इस देश में कभी भी किसान हितैषी सरकारें नहीं आईं. लेकिन मोदी सरकार ने किसान विरोध के मामले में पिछली सब सरकारों को मात दे दी है। यह देश की पहली सरकार है जो हर स्तर पर किसान विरोधी साबित हुई है. क्योंकि इसने आपदा में किसानों की मदद नहीं की, बल्कि जानबूझ कर किसानों पर नियोजित हमले करके उनकी कमर तोड़ दी। डबल आफत की सरकार इस देश की अब तक की सबसे किसान विरोधी सरकार है।
लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील सिंह ने किसान विरोधी लाए गए अध्यादेश को केंद्र सरकार का किसानों के प्रति षड्यंत्र बताया है श्री सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार कोरोना काल में कृषि क्षेत्र को पूरी तरह कार्पोरेट घरानों के हाथों में सौंपने के लिए बिना सदन में चर्चा किए किसान विरोधी अध्यादेशों को पारित किया और अब इसे विधेयक के रूप में पारित करने जा रही है। केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियां ही किसानों को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर की है।
किसान यदि सड़क पर उतर रहे हैं तो उसकी एकमात्र जिम्मेदार केंद्र सरकार है. किसानों के दर्द को समझने वाले लोकदल ने केंद्र सरकार से मांग की हैं कि जब आप बिना लोकसभा में चर्चा किए तीनों अध्यादेश पारित किए हैं तो 15 सितंबर से प्रारंभ हुए, इस लोकसभा सत्र में उसे रद्द करें और इन्हें सर्वसमावेशी विधेयक का रूप दें, इसके लिए किसान से कोई सलाह मशविरा नहीं की गई थी, बल्कि कॉरपोरेट सेक्टर के संगठनों से इस बारे में केंद्र सरकार ने संवाद किया था। ऐसे में किसानों के मन में कई ऐसी आशंकाएं है कि यह अध्यादेश किसानों के हितों के बजाय कारपोरेट के हितों के लिए ज्यादा है। सरकार को चाहिए कि वह इन विधायकों को एक परामर्श दात्री समिति गठित कर सर्वप्रथम उसे भेजें। इस समिति में किसान संगठनों कृषि विशेषज्ञों तथा किशन सभी हितधारकों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए। सरकार द्वारा किसानों के इन शंकाओं का समुचित समाधान करने के पश्चात ही इसे विधेयक के रूप में सदन के पटल पर रखना उचित होगा।
वर्तमान में देश के सामने दो बड़ी समस्याएं खड़ी है। पहला, कोविड19 महामारी और दूसरी ओर सीमा पर चीन की दुर्निर्वार्य आक्रामकता। इन दोनों समस्याओं को लेकर पूरा देश प्रधानमंत्री जी आपके साथ है. देश की वर्तमान सर्वोच्च प्राथमिकता भी यही होनी चाहिए कि कि इन अध्यादेशों को जल्दबाजी में विधेयक के रूप में पारित किये जाने से रोकें तथा इसे परामर्श समिति के पास भेजा जाएं। ताकि परामर्श समिति किसान किसान संगठनों के साथ-साथ विधेयक से संबंधित सभी हितधारकों से संवाद स्थापित उनके सुझाव ले तथा शंकाओं को दूर करते हुए एक सर्व समावेशी विधेयक का प्रारूप तैयार करे।
किसानों को संदेह है कि जिस रूप में विधेयक को पास किये जाने की कवायद चल रही है, इससे कारपोरेट द्वारा किसानों के हितों का दोहन किया जाएगा। लोकदल की मांग है कि यह अध्यादेश वापस लिया जाए अन्यथा किसान सड़कों पर आंदोलन करने पर विवश हो जाएगा।