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समरसता की सांस्कृतिक विरासत

डॉ.दिलीप अग्निहोत्री

दुनिया में मात्र भारतीय संस्कृति ने सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना की है। इस तथ्य को व्यपक रूप में समझने व उस पर अमल की आवश्यकता है। इससे विश्व में शांति व सौहार्द का सपना साकार हो सकता है। उपासना पद्धित व धार्मिक मान्यताएं अलग हो सकती है। सभी के प्रति सम्मान के भाव को जागृत करने की आवश्यकता है। कुछ समय पहले आरएसएस के सर संघ चालक मोहन भागवत ने सामाजिक समरसता का सन्देश दिया था। उनका कहना था कि सभी भारतीयों का डीएनए एक है। इसलिए सामाजिक समरसता का भाव रहना चाहिए। उपासना पद्धति में अंतर होने से भी इस विचार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। भारत में तो प्राचीन काल से सभी मत पंथ व उपासना पद्धति को सम्मान दिया गया। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः ही भारत की विचार दृष्टि है। निःस्वार्थ सेवा और सामाजिक समरसता भारत की विशेषता रही है। सेवा कार्य में कोई भेदभाव नहीं होता।

संविधान की प्रस्तावना में ही बंधुत्व की भावना का उल्लेख किया गया है। यह शब्द हिंदुत्व की भावना के अनुरूप है। इस दर्शन में किसी सम्प्रदाय से अलगाव को मान्यता नहीं दी गई। विविधता के बाद भी समाज एक है। भाषा,जाति, धर्म,खानपान में विविधता है। उनका उत्सव मनाने की आवश्यकता है। कुछ लोग विविधता की आड़ में समाज और देश को बांटने की कोशिश में जुटे रहते हैं। लेकिन भारतीय चिंतन विविधता में भी एकत्व सन्देश देता है।

भारतीय संस्कृति का आचरण सद्भाव पर आधारित है। यह हिंदुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत में रहने वाले ईसाई और मुस्लिम परिवारों के भीतर भी यह भाव साफ देखा जा सकता है। एक सौ तीस करोड़ का समाज भारत माता का पुत्र है। हमारा बंधु है। क्रोध और अविवेक के कारण इसका लाभ लेने वाली अतिवादी ताकतों से सावधान रहना है। सेवा समरसता आज की आवश्यकता है। इस पर अमल होना चाहिए। इसी से श्रेष्ठ भारत की राह निर्मित होगी।वर्तमान परिस्थिति में आत्मसंयम और नियमों के पालन का भी महत्व है। समाज में सहयोग सद्भाव और समरसता का माहौल बनाना आवश्यक है। भारत ने दूसरे देशों की सहायता करता रहा है। क्योंकि यहीं हमारा विचार है।

समस्त समाज की सर्वांगीण उन्नति ही हमारा एकमात्र लक्ष्य है। जब हिंदुत्व की बात आती है तो किसी अन्य पंथ के प्रति नफरत, कट्टरता या आतंक का विचार स्वतः समाप्त हो जाता है। तब वसुधैव कुटुंबकम व सर्वे भवन्तु सुखिनः का भाव ही जागृत होता है। भारत जब विश्व गुरु था,तब भी उसने किसी अन्य देश पर अपने विचार थोपने के प्रयास नहीं किये। भारत शक्तिशाली था, तब भी तलवार के बल पर किसी को अपना मत त्यागने को विवश नहीं किया। दुनिया की अन्य सभ्यताओं से तुलना करें तो भारत बिल्कुल अलग दिखाई देता है। जिसने सभी पंथों को सम्मान दिया। सभी के बीच बंधुत्व का विचार दिया। ऐसे में भारत को शक्ति संम्पन्न बनाने की बात होती है तो उसमें विश्व के कल्याण का विचार ही समाहित होता है। भारत की प्रकृति मूलतः एकात्म है और समग्र है। अर्थात भारत संपूर्ण विश्व में अस्तित्व की एकता को मानता है।

इसलिए हम टुकड़ों में विचार नहीं करते। हम सभी का एक साथ विचार करते हैं। समाज का आचरण शुद्ध होना चाहिए। इसके लिए जो व्यवस्था है उसमें ही धर्म की भी व्यवस्था है। धर्म में सत्य,अहिंसा,अस्तेय ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह,शौच, स्वाध्याय,संतोष,तप को महत्व दिया गया। समरसता सद्भाव से देश का कल्याण होगा। हमारे संविधान के आधारभूत तत्व भी यही हैं। संविधान में उल्लेखित प्रस्तावना,नागरिक कर्तव्य,नागरिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व यही बताते हैं। जब भारत एवं भारत की संस्कृति के प्रति भक्ति जागती है व भारत के पूर्वजों की परंपरा के प्रति गौरव जागता है, तब सभी भेद तिरोहित हो जाते हैं। भारत ही एकमात्र देश है, जहाँ पर सबके सब लोग बहुत समय से एक साथ रहते आए हैं। सबसे अधिक सुखी मुसलमान भारत देश के ही हैं। दुनिया में ऐसा कोई देश है, जहाँ उस देश के वासियों की सत्ता में दूसरा संप्रदाय रहा हो। हमारे यहाँ मुसलमान व ईसाई हैं। उन्हें तो यहाँ सारे अधिकार मिले हुए है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस विचार को आगे बढ़ाया। वर्तमान केंद्र व उत्तर प्रदेश की सरकारें बिना भेदभाव के योजनाओं का लाभ सभी जरुरतमन्दों तक पहुंचा रही है। योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि पूरे देश का डीएनए एक है। यह थ्योरी से प्रमाणित हुआ है। यहां आर्य द्रविण का विवाद झूठा और बेबुनियाद रहा है। भारत का डीएनए एक है। इसलिए भारत एक है। दुनिया की तमाम जातियां अपने मूल में ही समाप्त होती गई हैं। जबकि भारत में फलफूल रही हैं। पूरी दुनिया को भारत ने ही वसुधैव कुटुंबकम का भाव दिया है। इसलिए वह श्रेष्ठ है। प्रत्येक भारतीय को अपने पवित्र ग्रन्थों वेद, पुराण उपनिषद, रामायण महाभारत आदि की जानकारी है। भारतीय परम्परागत रूप से इन कथाओं को सुनते हुए,उनसे प्रेरित होते हुए आगे बढ़ता है। आर्य बाहरी हैं कि थ्योरी कुटिल अंग्रेजों और वामपंथी इतिहासकारों की देन है। वेद,पुराण या हमारे अन्य ग्रन्थ यह नहीं कहते कि हम बाहर से आए हैं। हमारे ग्रन्थों में आर्य श्रेष्ठ के लिए और अनार्य दुराचारी के लिए कहा गया है।

रामायण में माता सीता ने प्रभु श्रीराम की आर्यपुत्र कहकर संबोधित किया है। लेकिन कुटिल अंग्रेजों ने वामपंथी इतिहासकारों के माध्यम से इतिहास की पुस्तकों में यह पढ़वाया कि तुम आर्य बाहर से आए है। ऐसे ज्ञान से नागरिकों में माता भूमि पुत्रोह्म पृथिव्यां का भाव कैसे पैदा होगा। इतिहास के इस काले अध्याय के जरिये की गई कुत्सित चेष्ठा का परिणाम देश लंबे समय से भुगतता रहा है। इसीलिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक भारत-श्रेष्ठ भारत का आह्वान करना पड़ा।नरेंद्र मोदी के विरोध के पीछे एक ही बात है। उनके नेतृत्व में अयोध्या में पांच सौ वर्ष पुराने विवाद का समाधान हुआ है। विवाद खत्म होने से जिनके खाने कमाने का जरिया बंद हो गया है तो उन्हें अच्छा कैसे लगेगा। समाज जब विस्मृति के चंगुल में फंस जाता है तो वह फरेब का शिकार हो जाता है। भारतीयों के साथ भी यही हुआ। विवाद तो रामजन्मभूमि और ढांचे को लेकर भी खड़ा किया गया। ऐसे में भारतीयों को फरेब के चंगुल से बाहर निकालने को नरेंद्र मोदी ने सबका साथ सबका विकास और एक भारत-श्रेष्ठ भारत का मंत्र दिया।

जब चीन हमारी सीमाओं पर अतिक्रमण करता था और हम मौन रहते थे। आज सक्षम नेतृत्व ने डोकलाम में चीन को जो करारा जवाब दिया। हमारा समाज अब स्वाबलंबी व आत्मनिर्भर बन रहा है। सामाजिक समरसता की दिशा में अनेक लोगों ने योगदान दिया। उन्होंने भारतीय चिंतन की मूल भावना से लोगों को अवगत कराया। महंत अवैद्यनाथ रामनाथपुरम और मीनाक्षीपुरम में अनुसूचित जाति के लोगों के सामूहिक धर्मातरण की घटना से वह विचलित हुए थे। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उन्होंने प्रयास प्रारंभ किया। उन्होंने मतान्तरण के विरुद्ध माहौल बनाया। वह योग व दर्शन के मर्मज्ञ थे। उन्होंने हिंदुओं के बीच भेदभाव समाप्त करने का कार्य किया। इसके लिए वह समय समय पर सहभोज का आयोजन करते रहे। काशी में उन्होंने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के घर जाकर भोजन किया। वह हिन्दू समाज को एकजुट देखना चाहते थे।

हिंदू समाज की एकता ही उनके प्रवचन के केंद्र में होती थी। वह मूलत: इतिहास और रामचरितमानस की कथा पर प्रवचन करते थे। श्रीराम का शबरी, जटायु,निषादराज व वनवासियों से व्यवहार के मर्म को समझाते थे। श्री राम के आचरण से बढ़ कर समरसता का दूसरा कोई उदाहरण नहीं हो सकता। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष के अलावा वह योगवाणी पत्रिका के संपादक रहे। योग व दर्शन के विद्वान लेखक थे। गोरक्षपीठ से जुड़ी चिकित्सा,शिक्षा और सामाजिक क्षेत्रों में काम दर्जनों संस्थाओं के मार्गदर्शक थे। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ व ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने राष्ट्र,धर्म व लोक कल्याण के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। यह शैव परंपरा की पीठ है। लेकिन वैष्णव परम्परा के श्रीराम मंदिर निर्माण में भी गोरक्षपीठ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महंतद्वय ने पीठ को मात्र उपासना तक सीमित नहीं रखा बल्कि लोक कल्याण के लिए समर्पित कर दिया।

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