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मजबूत हौसले व आत्मविश्वास के साथ टीबी को दी मात, नसीम बनीं चैम्पियन, अब कर रहीं दूसरों को जागरूक

कानपुर नगर। जो लोग पहले देखकर दरवाजे बंद कर लेते थे आज वही आमंत्रित करते हैं और साथ में बैठकर बातें करते हैं। टीबी मरीजों के साथ इस तरह का भेदभाव ठीक नहीं है क्योंकि टीबी पूरी तरह ठीक होने वाली बीमारी है। टीबी को मात देने के बाद अब कुछ ऐसा ही संदेश समुदाय तक पहुंचा रही हैं शहर के बाबूपुरवा मोहल्ले की रहने वाली नसीम बानो। नसीब वर्ष 2016 में टीबी से ग्रसित हुईं थीं। नियमित दवाओं के सेवन और सही मार्गदर्शन के साथ जिंदगी ने करवट ली और उन्होंने मजबूत हौसले व आत्मविश्वास के दम पर खुद को पूरी तरह से टीबी मुक्त कर लिया। अब समाज में इस रोग के खिलाफ मुहिम भी छेड़ रखी है।

स्वास्थ्य विभाग की ओर से नसीम को टीबी चैंपियन बनाया गया है। वह लोगों को इस रोग के लक्षण व इलाज के लिए प्रेरित करती हैं। #नसीम बताती हैं कि टीबी लाइलाज बीमारी नहीं हैं। समय पर सही उपचार से यह पूरी तरह ठीक हो सकती है। वह लोगों को लापरवाही न बरतने के बारे में जागरूक कर रही हैं। हालांकि नसीम की राह आसान नहीं रही क्योंकि घर में तंगी और ऊपर से समाज का डर उन्हें हमेशा सताता रहा।
नसीम बताती हैं कि वर्ष 2016 में उन्हें बुखार, खांसी व जुकाम हुआ।

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पहले कुछ दिनों से हो रहे सीने में दर्द और खांसी को नजरअंदाज किया। फिर कई निजी मेडिकल स्टोर से लेकर दवा खायी, दवा खाने से बुखार ठीक हो गया लेकिन कुछ महीने बाद अचानक से फिर बुखार आया। चिकित्सक को दिखाया तो सीने के एक्स-रे की जांच करवाई, लेकिन कुछ पता नहीं चल सका। घर आकर परिजनों को बताया, लेकिन गरीबी के चलते कहीं भी मुकम्मल इलाज नहीं करा सकीं।

धीरे-धीरे खांसी ने #टीबी का रूप ले लिया। टीबी रोगी खोज अभियान के दौरान स्वास्थ्य विभाग की टीम ने इन्हें खोजा और जांच की गई। रिपोर्ट पाजिटिव आयी और पता चला की पल्मोनरी टीबी (फेफड़ों की टीबी) है, इसके बाद स्वास्थ्य विभाग में विशेषज्ञों की राय से इलाज शुरू किया। दवा खाने में नसीम को कुछ दिक्कतें भी हुईं, जैसे उल्टी आना, गैस बनना, सिरदर्द, घबराहट, बेचौनी, सांस फूलना, बाल झड़ना व त्वचा आदि की समस्याएं आईं। इसके बावजूद दवा खाना बंद नहीं किया, जिसका नतीजा रहा कि नसीम का इलाज पूरा हो गया।

जिला क्षय रोग अधिकरी डा. एपी मिश्रा ने बताया कि नसीम आस-पास के गांवों में टीबी रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने में पूरा सहयोग कर रही हैं। उन्होंने कहा कि थकान, बुखार, दो या उससे ज्यादा हफ्तों से खांसी, खांसी में खून आना, खांसते या सांस लेते हुए सीने में दर्द होना, अचानक वजन घटना, ठंड लगना और सोते समय पसीना आना आदि टीबी के लक्षण होते हैं। इसका इलाज संभव है।

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सरकार की तरफ से इलाज बिल्कुल मुफ्त है। टीबी मरीजों को निक्षय पोषण योजना के तहत इलाज के दौरान हर माह 500 रुपए बैंक खाते में दिए जाते हैं।

बीमारी के चलते किया भेदभाव का सामना

नसीम बताती हैं कि उनके पिता दर्जी का काम करते हैं। माँ भी पिता के काम में उनका सहयोग करती हैं। भाई – भाभी सभी साथ रहते हैं। जब पता चला की नसीम को टीबी है तो उन्होंने मोहल्ले में किसी को पता नहीं लगने दिया की उन्हें टीबी है क्योंकि उन्हें डर था लोग क्या कहेंगे। इसके बावजूद कुछ लोगों को पता चल गया कि टीबी हुई है तो मुझसे धीरे-धीरे उन लोगों ने किनारा करना शुरू कर दिया। जहाँ ट्यूशन के लिए जाती थी वहां सभी ने बिना कुछ कहे घर आने और पढ़ाने से मना कर दिया। बहुत ही अजीब लगा कि ऐसा क्या गुनाह हो गया जो सब मुँह मोड़ रहे हैं। इसके बावजूद खुद का मनोबल गिरने नहीं दिया और आज पूरी तरह स्वस्थ हूँ। खुद की रहमत रही की लोगों ने मेरे मनोबल के आगे खुद ही घुटने टेक दिये और पहले जिन्होंने बुलाना बंद किया था वहीँ फिर से आज पढ़ा रहीं हूँ।

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर 

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