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40 हज़ार सिक्खों की बहादुरी का सबूत है घल्लूघारा; शहीदों को श्रद्धा से किया गया याद

लखनऊ। नाका हिंडोला में ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरु सिंह सभा में बुधवार को, बड़े घल्लूघारे (बड़ा नरसंहार) में हुए शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किये गये। आयोजन की शुरुआत सुबह के वक़्त से हुई, जहाँ दीवान श्री सुखमनी साहिब जी के पाठ से आरम्भ किया गया। उसके उपरान्त हजूरी रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह ने आसा की वार का शबद कीर्तन गायन कर, समूह संगत को निहाल किया। इस अवस्र पर ज्ञानी सुखदेव सिंह ने बड़े घल्लूघारे (बड़े नरसंहार) में हुए शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

जब तोपें थीं मुक़ाबिल, तब 40,000 सिक्ख पड़ गए थे भारी; घल्लूघारे का ये है इतिहास

ज्ञानी सुखदेव सिंह ने बताया कि 9 फरवरी, 1762 को, जब पंजाब में अहमद शाह दुर्रानी, अपने मुखबिर की सूचना पर सिक्खों को तबाह करने और हमला करने के लिए आया था। बड़ा घल्लूघारा, कुपरहिरा से लगभग 12 किमी के उत्तर में मलेरकोटला में मौजूद है। उस समय 40,000 सिंह (सिक्ख) जिसमें 10,000 महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग लोग शामिल थे। सिंह अपनी महिलाओं को सुरक्षा के लिए बीकानेर ले जाना चाहते थे। अहमद शाह ने अगले दिन उन्हें पूरी तरह से मारने का इरादा किया। भीखन खान मालेरकोटला के जैन खान ने 9 फरवरी 1762 को 20 हजार लोगों और तोपों के साथ हमला किया।

अब्दाली भी 30 हजार लोगों के साथ हमले में शामिल हुआ। सरदार जस्सा सिंह और चरत सिंह ने अपनी महिलाओं के इर्दगिर्द सुरक्षा घेरा बनाने का आदेश दिया और युद्ध की रणनीति के रूप में बरनाला की ओर आगे बढ़ते रहे। सिंहों का एक मात्र उद्देश्य अपनी महिलाओं को किसी तरह से बचाना था और दुश्मन से लड़ना था। ताकि, उनको अधिकतम नुकसान से बचाया जा सके। इस प्रक्रिया में सिंह भारी पड़ गये थे।

लगभग 25000 से 30000 लोगों को गंवानी पड़ी थी जान 

इस संहार में लगभग 25000 से 30000 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। 19 लोगों के साथ सरदार छत्र सिंह को मार दिया गया था। लेकिन, सिंहो ने इस नरसंहार के बाद भी कभी मनोबल नहीं खोया। 1762 के दौरान एक बार फिर लाहौर को घेरने में सक्षम हो गए। दल के रक्षक सरदार जस्सा सिंह अहलूवालिया ने कई मौकों पर शाह की टुकड़ियों का घेरा तोड़ दिया और असहाय असंतुष्टों को मौत के घाट उतार दिया।

फिर भी मनोबल कम न हुआ

सिखों के जीवन के नुकसान का अनुमान 20,000 से 50,000 तक हुआ यह सिखों के लिए एक गंभीर झटका था, लेकिन उनका मनोबल फिर भी कम न हुआ। दीवान की समाप्ति के उपरान्त लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्शक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने घल्लूघारे में हुए शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किये। कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया। तत्प्श्चात श्रद्धालुओं में चाय का लंगर वितरित किया गया।

            दया शंकर चौधरी

 

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