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कर्तव्यों के साथ अधिकारों का महत्व

गणतंत्र दिवस राष्ट्रीय सनकल्पनों को सिद्धि तक पहुंचाने की प्रेरणा देता है। संविधान निर्माताओं ने राष्ट की एकता अखंडता को सर्वाधिक महत्व दिया। इसके साथ ही उन्होंने शक्तिशाली व आत्मनिर्भर भारत की कल्पना की थी। यह सपना स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान ही पल्लवित होने लगा था। संविधान के माध्यम से देश को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न बनाया गया। इसका मतलब था कि भारत परम वैभव की तरफ बढ़ने में सक्षम है। इसके दृष्टिगत निर्णय उसको ही लेने है। इस दिशा में बढ़ने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान का शुभारंभ किया गया था। इसके साथ ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से भी प्रेरणा ली गई। देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आर्थिक प्रगति के साथ ही राष्ट्रीय स्वाभिमान की आवश्यकता होती है। वर्तमान सरकार ने इस तथ्य को समझा है। इसके अनुरूप प्रयास किये गए। प्रयास चल रहे है। देश रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो रहा है। सांस्कृतिक चेतना व स्वाभिमान का पुनर्जागरण हो रहा है।

अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य प्रगति पर है। भव्य श्री काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण हो चुका है। इसकी भव्य झांकी राजपथ पर दिखाई गई। लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सरकारी आवास पर ध्वजारोहण किया। उन्होंने संविधान में उल्लखित अधिकार व कर्तव्यों को रेखांकित किया। कहा कि भारत के संविधान में देश के प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के साथ ही मौलिक कर्तव्यों की भी व्यवस्था की गई है। अधिकार और कर्तव्य के बीच का यह समन्वय भारत के संविधान को दुनिया के अन्य संविधानों में विशिष्ट बनाता है।

प्रस्तावना में कहा गया- हम भारत के लोग,भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख छब्बीस नवंबर, उन्नीस सौ उनचास ई मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं। इसी प्रकार हमको मूल अधिकारों की भी जानकारी होनी चाहिए।

संविधान ने छह मूल अधिकार प्रदान किये है। समता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार शोषण के विरुद्ध अधिकार धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार संवैधानिक उपचारों का अधिकार संविधान ने दिया है। बयालीसवें संविधान संशोधन से मूल कर्तव्य जोड़े गए। इसमें कहा गया कि प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होगा कि वह- संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र्गान का आदर करे।

स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखे व उनका पालन करे। भारत की प्रभुता एकता व अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाये रखें। देश की रक्षा करें और आवाह्न किए जाने पर राष्ट् की सेवा करें। भारत के सभी लोग समरसता और सम्मान एवं भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग के भेदभाव पर आधारित न हों, उन सभी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हों। हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें। प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी, वन्य प्राणी आदि आते हैं की रक्षा व संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवतावाद व ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें। सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें व हिंसा से दूर रहें। व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों सतत उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति करते हुए प्रयात्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले। यदि आप् माता-पिता या संरक्षक हैं तो छह वर्ष से चौदह वर्ष आयु वाले अपने या प्रतिपाल्य यथास्थिति बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करें। यह छियासिवे संविधान संशोधन दो हजार एक द्वारा जोडा गया था। गणतंत्र दिवस पर इन सभी बातों से प्रेरणा लेनी चाहिए। जिससे हम आदर्श नागरिक के रूप में राष्ट्र के विकास में अपना योगदान कर सकें।

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