मध्यप्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में नोटा निर्णायक साबित हुआ था। उस समय भाजपा से जुड़े लोगों ने ही नोटा अभियान चलाया था। उनका विरोध दलित एक्ट पर भाजपा सरकार के रुख से था। वह कांग्रेस के साथ नहीं जा सकते थे। इसलिए नोटा का प्रयोग किया। तब आठ से अधिक सीट ऐसी थी,जिनमें भाजपा की पराजय नोटा के कारण हुई थी। पूरे मध्यप्रदेश में भाजपा का वोट प्रतिशत भी कम नहीं था।
लोकप्रियता में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शीर्ष पर थे। जबकि कमलनाथ का प्रभाव छिंदबाड़ा के आस पास तक सीमित था। लेकिन सरकार बनाने का अवसर उन्हीं को मिला। कमलनाथ की सरकार अंतर्विरोधों से घिरी थी। उसके कुछ विधायकों ने बगावत कर दी। इस कारण वह सरकार गिर गई।
पुनः शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने। कमलनाथ सरकार के प्रति इतना आक्रोश था कि बागी विधायकों ने अपनी सदस्यता की परवाह नहीं की। ऐसे में उपचुनाव बहुत महत्वपूर्ण हो गए थे। कांग्रेस का दावा था कि वह उपचुनाव की सभी सीटें जीतकर पुनः सरकार बनाने की स्थिति में आ जायेगी।
लेकिन मतदाताओं को यह स्वीकार नहीं था। उन्होंने उपचुनाव में भाजपा को पर्याप्त राहत प्रदान कर दी है। शिवराज की यह सरकार बिना बाधा अपना कार्यकाल पूरा कर सकेगी। पिछले चुनाव में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा को बहुमत न मिलने के पीछे नोटा को मुख्य वजह माना जा रहा था।
चौदह सीटों पर हार का अंतर नोटा में पड़े वोट से भी कम था। तब डेढ़ प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया था। उपचुनाव में यह भूल सुधरी गई है। अब भाजपा सरकार के बहुमत पर कोई संशय नहीं रह गया है।