उत्तर कोरिया में बाइबिल के साथ पकड़े गए ईसाइयों को मौत की सजा का सामना करना पड़ता है। बच्चों सहित उनके परिवारों को भी आजीवन कारावास की सजा दी जाती है। एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है।
2022 के लिए विदेश विभाग की अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट का अनुमान है कि उत्तर कोरिया में 70,000 से अधिक ईसाई व अन्य धर्मों के लोग कैद में बंद हैं।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जेल भेजे गए कई लोगों में एक दो साल का बच्चा भी था जिसे कथित तौर पर उसके माता-पिता के पास बाइबिल पाए जाने के बाद आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। परिवार को उनकी धार्मिक प्रथाओं और बाइबिल रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। दो साल के बच्चे सहित पूरे परिवार को 2009 में एक राजनीतिक जेल शिविर में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
इन शिविरों में कैद किए गए ईसाइयों ने गंभीर परिस्थितियों और शारीरिक दुर्व्यवहार के विभिन्न रूपों का वर्णन किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सुरक्षा मंत्रालय शैमैनिक फॉलोअर्स और ईसाइयों दोनों के खिलाफ 90% लिखिल मानवाधिकारों के हनन के लिए जिम्मेदार था।
सताए गए व्यक्तियों को गिरफ्तार किया जा सकता है, हिरासत में लिया जा सकता है, काम करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, प्रताड़ित किया जा सकता है, निष्पक्ष सुनवाई से वंचित किया जा सकता है, निर्वासित किया जा सकता है, जीवन के अधिकार से वंचित किया जा सकता है, या यौन हिंसा के अधीन किया जा सकता है।
उत्तर कोरिया में “न्याय में तेजी लाने और उत्तरदायित्व का समर्थन करने के लिए काम कर रहे” एक गैर-लाभकारी संगठन, कोरिया फ्यूचर की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए राज्य विभाग का कहना है कि उत्तर कोरियाई सरकार उन लोगों को सताती है जो धार्मिक प्रथाओं में संलग्न हैं, धार्मिक वस्तुओं को रखते हैं, धार्मिक लोगों से संपर्क करते हैं।