ओजोन (O3) आक्सीजन तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो वायुमण्डल में बहुत कम मत्रा (0.02%) में पाई जाती हैं। यह तीखे गंध वाली अत्यन्त विषैली गैस है। इसके तीखे गंध के कारण ही 1940 में शानबाइन ने इसे ओजोन नाम दिया जो यूनानी शब्द ओजो से बना है जिसका अर्थ है सूंघना। यह जमीन के सतह के ऊपर अर्थात निचले वायुमंडल में यह एक खतरनाक दूषक है, जबकि वायुमंडल की ऊपरी परत ओजोन परत के रूप में यह सूर्य के पराबैंगनी विकिरण (खतरनाक किरणों) से पृथ्वी पर जीवन को बचाती है, जहां इसका निर्माण ऑक्सीजन पर पराबैंगनी किरणों के प्रभाव स्वरूप होता है।1965 में सोरेट ने यह सिद्द किया की ओजोन ऑक्सीजन का ही एक अपरूप है। यह समुद्री वायु में उपस्थित होती है।
समय के साथ मनुष्य विज्ञान के क्षेत्र में कई उलेखनीय काम किया है। इसका परिणाम भी प्रकृति पर पड़ा है। आज हमे गाड़ियां, मशीन, एलपीजी, फ्रीज, एसी सहित न जाने कितने ही उपकरणो का अविष्कार कर लिया है जिसका बाई प्रोडक्ट के रुप में कार्बन, कार्बन डाई ऑक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन वातावरण में मिलते रहते है। इसके अलावा यातायात से परिवहन के धुएं, कल कारखानों से निकले धुएं भी प्रदूषण के स्तर को रोज तेजी से बढ़ा रहे हैं। जिस कारण ग्रीन हाउस प्रभाव उतपन्न हो रहा है। इसका बुरा असर जीव जन्तुओं के स्वास्थ पर पड़ रहा है। मनुष्य में त्वचा कैंसर होने की संभावना पराबैगनी किरणों के कारण बढ़ी है। आंखों में मोतियाबिंद भी हो सकती है, साथ ही साथ फसले इसके भी प्रभाव से नष्ट हो सकती है।
प्रदूषण के असर से, वातावरण मलीन…
लाल धरा तो धरा, अब हुआ ओजोन क्षीण।।
सूर्य की हानिकारक किरणों से-
उद्योगो में प्रयुक्त होने वाले क्लोरो फ्लोरो कार्बन, हैलोजन तथा मिथाइल ब्रोमाइड जैसे रसायनों के द्वारा निकले बिजातीय पदार्थो से ओजोन परत पर भी प्रभाव पड़ता जा रहा है। यह परत पृथ्वी पर जीवन के लिए अत्यंत जरुरी है। ओजोन परत धरती के ऊपर एक छतरी के समान है। जो सूर्य के हानिकारक किरणों (पराबैगनी) को धरती पर आने से रोकती है किन्तु अब अनेक प्रदूषकों के कारण इस परत में छेद हो रहे हैं। जिस कारण सूर्य की हानिकारक किरणों से पृथ्वी पर आने से रोकना नामुमकिन होते जा रहा है। इस विषय पर कई वैज्ञानिको ने अध्ययन किया और 10 वर्ष पूर्व अंटार्कटिका के उपर एक बड़ी ओजोन की खोज की थी। अंटार्कटिका स्थित होली शोध केन्द्र में इस छिद्र को देखा गया था। वातावरण के उपरी हिस्से में जहां ओजोन गैस होती है वहां का तापमान सर्दियों में काफी कम हो जाता है। इस कारण इन क्षेत्रों में बर्फिले बादल का निर्माण होने से रसायनिक प्रतिक्रियाएं होने लगती है जिससे ओजोन नष्ट हो रहे है।
ओजोन परत की रक्षा हम सब की जिम्मेदारी-
एक अध्ययन के अनुसार 1960 के मुकाबले ओजोन 40% नष्ट हो चुकी है। इस शोध के अनुसार गर्मियो में भी ओजोन का क्षय इसी दर से बढ़ता है जिससे अंटार्कटिका और इसके आस-पास सूर्य की पराबैगनी किरणें बढ़ती जा रही है। यह काफी चिंता का विषय है। इसका असर ग्लोबल वार्मिंग पर भी पड़ेगा। अतः आज जरुरी है कि आवश्यकता अनुसार ही साधनों का उपयोग करे और प्रदूषण के प्रति जागरुक रहे। सरकार भी इसके लिए पहल कर रही है पर बिना जन भागिदारी के इसे बचाना संभव नही है इसलिए अपनी सहभागिता भी प्रकृति के प्रति दिल खोलकर निभाइये तभी मानव जीवन आनंदमय रह पायेगा और ओजोन संकट पर काबू पाया जा सकता है।
लाल बिहारी लाल