नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों में होने वाले राष्ट्रगान को लेकर अपने आदेश को बदलते हुए कहा है कि अब यह अनिवार्य नहीं रहेगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों में राष्ट्रगान को अनिवार्य करने का आदेश दिया था।
फैसले को लेकर काफी विरोध था
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर काफी विरोध था। सिनेमाघरों में इसे अनिवार्य किए जाने पर कई लोगों ने इसका विरोध किया था। सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई थी। विरोध करने वालों को देशद्रोही माना जाने लगा था।
- वहीं विरोधी पक्ष का कहना था कि वे मनोरंजन के लिए सिनेमाहाल जाते हैं।
- उन पर जबदस्ती देशभक्ति ना थोपा जाए।
- केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि वह अपने आदेश में बदलाव करे।
- चार पेज के हलफनामे में केंद्र ने तर्क दिया था कि वह एक अंतर
- मंत्रीमंडलीय समिति का गठन करने जा रहा है।
- उसकी रिपोर्ट के आधार पर सरकार नए सिरे से अधिसूचना जारी करेगी।
- तब तक अदालत आदेश पर रोक लगाए।
- सुप्रीम कोर्ट ने 30 नवंबर 2016 के आदेश में राष्ट्रगान के बजाने को अनिवार्य कर दिया था।
- उस दौरान लोगों को हर हाल में खड़े होना था।
- हालांकि बाद में दिव्यांगों के लिए अदालत ने अपने आदेश में संशोधन भी किया था।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला श्याम प्रसाद की याचिका पर सुनाया था।
-
राष्ट्र के प्रति सम्मान जगाने का तरीका
- उनकी मांग थी कि आम जन में राष्ट्र के प्रति सम्मान जगाने का यह कारगर तरीका है।
- 23 अक्टूबर को अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था।
- कि सिनेमाहाल में राष्ट्रगान बजाने का फैसला बेहतरीन है।
- और इससे सारे देश में एकता का भाव पैदा होता है।
- लेकिन यह काम सरकार पर छोड़ना चाहिए कि राष्ट्रगान कैसे बजाया जाए।
- और लोग किस तरह से उसके प्रति सम्मान दर्शाएं।
- सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी अपना फैसला सुनाते हुए यह माना था ।
- कि लोगों की देशभक्ति का पता लगाने के लिए राष्ट्रगान पर खड़ा होना भर कोई पैमाना नहीं है।
- जबकि लोग इसे देशभक्ति से जोड़कर देखने लगे थे ।
- और जो सिनेमाहाल में राष्ट्रगान बजाने पर खड़े नहीं हो रहे थे।
- उन्हें आलोचनाएं झेलनी पड़ रही थी। कई बड़ी हस्तियां भी इसमें शामिल हैं।
- कई नेताओं ने बागी तेवर अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को मानने से इंकार भी कर दिया था।
- इसको लेकर काफी फजीहत भी हुई थी।
- इस फैसले को लेकर देशभर से हिंसा की कई घटनाएं भी सामने आई थीं।
- जिसमें भीड़ ने किसी कारण से खड़े नहीं होने पर लोगों को पीट दिया था।