कहते हैं, सत्य ही ईश्वर है। यानी, जहां सत्य है, वहां ईश्वर का वास है। महाभारत में, जहां सत्य और धर्म है, वहां ईश्वर का साथ है। और जहां ईश्वर का साथ है, वहां विजय सुनिश्चित है। पर कोई भी सत्य अपने आप में ईश्वर नहीं है। क्योंकि, सत्यता एक बहुत बड़ा ईश्वरीय ज्ञान, गुण व शक्ति है। पर, यह ईश्वर नहीं है। ईश्वर तो सत्यता का शाश्वत स्रोत है। अपने आप में ये एक महीन और महान सत्य है। महीन इसलिए है की वह अति सूक्ष्म है। साकार व आकारी अस्तित्व से वो परे है। अशरीर व निराकार है। पर, परम चेतना व चरम संवेदनशीलता के वे धनी हैं। यही उनकी श्रेष्ठता व महानता है।
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सर्व मनुष्य आत्माओं के वे रूहानी पिता परमात्मा हैं। अन्य आत्माओं के तरह स्वरूप में वे दिव्य ज्योति बिंदु है। पर रूहानी ज्ञान, गुण और शक्तियों में सिंधु है। सदा और सर्व की कल्याणकारी होने के नाते वे सदाशिव व सर्वेश्वर है। समस्त जन जीवन, जीव और जड़ जगत को संतुलित, समरस, सत्तो प्रधान व खुशहाल बनाने में उनका कार्य सही अर्थ में सदा सुंदर व सुखदाई है। सभी अर्थों में ईश्वर ही सत्यम शिवम सुंदरम है। यानी, ईश्वर संसार का सर्वोच्च सत्य है, जिनका गुण व कर्त्तव्य वाचक नाम सदाशिव है, जो सदा सबके कल्याणकारी है। समस्त संसार और प्राणियों के लिए हितकारिता ही उनकी सच्ची सुंदरता है।
धर्म शास्त्रों में, परमात्मा शिव को निराकार दिव्य ज्योति स्वरूप माना गया है। ज्योतिर्लिंग के रूप में परमेश्वर शिव को ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आदि अनेक देवी देवताओं का आराध्य कहा गया है। भारत के बारह ज्योतिर्लिंग, सृष्टि में परमज्योत शिव के दिव्य अवतरण और शक्तियों के साथ पुनः मिलन का यादगार है। पूरे मानवता को ईश्वरीय ज्ञान, योग, वैश्विक मूल्यों और देवीगुणों से सशक्त व सुसंस्कृत करने का यह स्मृति चिन्ह है। यजुर्वेद में कहा है, “तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु”। अर्थात मेरे मन का हर संकल्प शिवमय हो, यानी शुभ और मंगलकारी हो। वास्तव में, परमात्मा शिव ही मन की शांति, शक्ति, खुशी, एकाग्रता, संतुष्टता व प्रसन्नता के आधार है। शुद्ध संकल्प, आत्मवोध, आत्म उत्थान व विश्व कल्याण के वे शाश्वत स्रोत है।
देखा जाए तो शिव शब्द में ही उनका मंगलकारी कर्त्तव्य समाया हुआ है। ‘शी ‘ और ‘व’ से बना शिव पाप नाशक व मुक्ति दाता है। यानी जो सबके पाप हरता व मुक्ति दाता है, वो परमात्मा शिव है। परमेश्वर शिव के इस तत्व दर्शन को समझ जाने से, तथा उनके श्रेष्ठ मत यानी श्रीमत पर चलने से, व्यक्ति आत्म उन्नति और परमात्मा की अनुभूति कर लेता है। इस तरह व्यक्तियों के पवित्र और पुण्यात्मा बन जाने से पूरी मानवता को मुक्ति, जीवन मुक्ति, गति, सद्गति मिल जाती है। जगत का कल्याण हो जाता है।
वेद व पुराणों में परमात्मा शिव को सदा ज्योति स्वरूप, प्रकृति पति, त्रिगुणातित व जन्म मृत्यु की चक्र से परे, अजन्मा बताया गया है। तो फिर, महाशिवरात्रि को त्रिमूर्ति शिव जयंती क्यों कहते हैं? अजन्मे का जन्म व जयंती कैसे? असल में, शिव परमात्मा सदा देह रहित, विदेही है। जन्म मृत्यु, विषय भोग, रोग शोक से परे वे अभोक्ता, अशोचता, अयोनिजन्मा, सदा निराकार दिव्य ज्योतिबिंदु स्वरूप है। वे प्रकृति के तीन गुण व अवस्था सत्तो, रजो और तमो से भी परे त्रिगुणातीत है। वे पंच तत्व वाली मानव शरीर, या माता की गर्भ से जन्म नहीं लेते। क्योंकि, वे प्रकृति पति और सबके रूहानी माता पिता सर्वेश्वर है। उनके कोई माता पिता नहीं हो सकते।
शिव महिमा स्तोत्रम में है, त्रिगुणातीत ज्योति स्वरूप शिव परमात्मा, ब्रह्मा देवता के रजो गुण द्वारा नई सृष्टि रचते हैं, एवं रूद्र देवता के तमो गुण द्वारा पतित पुरानी दुनियां का विनाश कराते हैं। तथा विष्णु देवता के सतो गुणों द्वारा नई सृष्टि का पालन करते हैं। जबकि सभी देवी देवताएं आकारी व साकारी शरीर धारी हैं, परमात्मा शिव अशरीर व निराकार शाश्वत ज्योति स्वरूप हैं।
अक्सर लोग भगवान शिव को शंकर व रूद्र नामी देवात्मा के साथ मिला देते हैं। असल में, शंकर व रूद्र सूक्ष्म देहधारी देवात्मा है। जबकी, शिव सभी देव आत्माओं के रचता परमात्मा है। उनके लिए ही गुरू ग्रंथ साहिब में गायन है, ‘मानुष को देव किए करत न लागे वार…’, अर्थात् मानव को देवता बनाने में परमात्मा को समय नहीं लगता। इसी तरह, ब्रह्मा देवताए नमः, विष्णु देवताए नमः व शंकर देवताए नमः कहकर शिवलिंग के ऊपर तीन रेखाएं अंकित की जाती है।
उन तीन लकीरों के ऊपर शिव परमात्माए नमः कहकर तिलक बिंदु लगाया जाता है। जिससे, दिव्य ज्योति बिंदु स्वरूप परमात्मा तीन देवों के भी संचालक त्रिदेव व त्रिमूर्ति शिव है। अर्थात्, इन तीन देवों द्वारा परमात्मा शिव सतयुगी दुनिया की स्थापना, पालना व कलियुगी अधर्मी संस्कृति का विनाश कराते हैं। तीन देव आत्माओं के द्वारा तीन दिव्य कर्तव्य संपादित कराते हैं। इसलिए सृष्टि पर शिव अवतरण को त्रिमूर्ति शिव जयंती कहते हैं।
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ज्योतिर्लिंग शिव परमात्मा ही ज्ञान सूर्य है। वे चार युगों वाली कल्प के अंत (कल्पान्त) के समय पर उदय होते हैं। शास्त्रों में वर्णित उनके साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा के ललाट में प्रगट व अवतरित होते हैं। कलयुगी अधर्म कि रात्रि, ब्रह्मा की रात्रि को समाप्त करते हैं। मानव जीवन व विश्व के पर्यावरण को शुद्ध पूत, पवित्र, हराभरा व खुशहाल करते हैं। तथा सतयुगी सदा बहार की वातावरण ले आते हैं। उन्हीं कह यह दिव्य आविर्भाव एवं विश्व कल्याणकारी कर्तव्यों की यादगार में महा शिवरात्रि महोत्सव मनाया जाता है।
शिवरात्रि में ‘रात्रि’ शब्द अंधकार का सूचक है। जो कि, मनुष्यों के मन में बसे अज्ञानता, देह अभिमान, अहंकार, अधर्म व भय रूपी अंधियारी का द्योतक है। उन विकारों रूपी तमस को ईश्वरीय ज्ञानयोग की शिक्षा व साधना द्वारा मानव जीवन व संसार से दूर कराने परमात्मा शिव अवतरित होते हैं। शास्त्रों में कहा है, ज्ञान सूर्य ज्योर्तिलिंग शिव उनके साकार माध्यम ब्रह्मा में उदय होते हैं। और उनके द्वारा अनेकों को रूहानी व्रत (शिव संकल्प), उपवास (ईश्वर के निकट वास), जागरण (आत्म जागृति) एवं आत्मा-परमात्मा मिलन कराते हैं। जिससे संसार में संस्कार परिर्वतन, जीवन उत्थान, विश्व कल्याण एवं पूरे सृष्टि का काया कल्प होता है। मानव देव समान व संसार सुखमय बन जाता है। इसे ही सच्चा महा शिवरात्रि महोत्सव कहते हैं।
हर महीने, कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को शिवरात्रि होती है। पर, महा शिवरात्रि वर्ष की अंत में एक ही बार आती है। शास्त्रों के अनुसार, हर कल्प के अंत में, सृष्टि परिवर्तन हेतु शिव परमात्मा को एक ही बार धरती पर अवतरण करना होता है। जिसकी याद में, हर साल हम एक ही बार महा शिवरात्रि मनाते हैं। जिस के लिए गायन भी है, ‘ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अंधेर विनाश’।
जिस प्रकार स्थूल सूर्य की तेज रोशनी, वातावरण में फैला अंधियारा, गंदगी, जीवाणु व कीटाणुओं को दुर या नाश करता है। वैसे रूहानी ज्ञान सूर्य परमात्मा अपनी दिव्य गुण और शक्तियों के पवित्र किरणों द्वारा उनसे प्रीत व योग लगाने वालों के मन बुद्धि की मलीनता, कलुशता, विकार, बुराई व विकर्मों को भस्म कर देते हैं।
परमात्मा के इन्हीं कल्याणकारी कार्यों के कारण उनका कर्तव्य वाचक मूल नाम शिव है। जिसका अर्थ शुभ या मंगलकारी है। परमात्मा वाचक शिव शब्द का आक्षरिक अर्थ भी पापनाशक व मुक्तिदाता है। वे जड़, जीव, प्रकृति व पुरूष सभी के सदा कलायणकारी होने कारण, उन्हें सदाशिव कहते हैं।
दिव्य ज्योति स्वरूप शिव परमात्मा अगर ज्ञान सूर्य हैं, तो शिव के दिव्य ज्ञान, गुण और शक्तियां वास्तव में, मनुष्यों के कायाकल्प करने वाली कल्याणकारी सूक्ष्म किरणे हैं। जिन किरणों से मानव में विद्यमान विकार, पाप व आसुरी अवगुण रुपी जीवाणु, किटाणु आदि भस्म हो जाते हैं। सृष्टि पर ज्ञान सूर्य शिव के उदय होने से, मनुष्यों के मन बुद्धि में बसी तमोगुण व रजोगुण आदि अज्ञानता दूर हो जाते हैं। आत्मा परमात्मा तथा शिव शक्तियों के यह मंगल मिलन का पर्व महाशिवरात्रि महोत्सव, श्रद्धालुओं को आत्म अवलोकन, आत्म अध्ययन व आत्मबोध का पाठ पढ़ाता है।
इसलिए इंसान, परमात्मा शिव से रूहानी ज्ञान और राजयोग की शिक्षा प्राप्त करें। अपनी आंतरिक शक्तियां और शिव की वरदानों को हासिल करें, जिससे वे अपने इन्द्रियों को नियंत्रित करने के साथ साथ काम, क्रोध, लोभ, ईर्षा, द्वेष, अहंकार आदि मनोविकारों के ऊपर भी विजय प्राप्त करें।
साथ ही, शिव परमात्मा से प्राप्त ईश्वरीय ज्ञान और राजयोग की नियमित एवं सामूहिक अभ्यास द्वारा मानव जीवन और समाज में दैवी गुण, दैवी चारित्र, दैवी संस्कार, दैवी संस्कृति एवं दैवी सभ्यता का पुनः विकास करें। अर्थात, परमात्मा शिव की ज्ञानयोग बल से मन में बसे विकारों की अज्ञान अंधकार नाश करने के साथ साथ, अपनी जीवन में सतयुगी देवी गुण और दैवी संस्कारों को विकसित करें। सृष्टि पर यही सच्ची महाशिवरात्रि महोत्सव होगा। और यही हमारे ओर से, परमात्मा शिव बाबा को श्रेष्ठ भेंट होगी।