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जनजाति भागीदारी उत्सव दिखीदेश की सतरंगी सांस्कृतिक छवि

• जनजाति लोकनायक बिरसा मुंडा की 148वीं जयंती के अवसर पर उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी में 21 नवम्बर तक किया जा रहा है वृहद आयोजन
• बीन वादन, जादू कला और कठपुतली ही नहीं खानपान और हस्तशिल्प प्रदर्शनी भी बनी आकर्षण का केन्द्र
• कार्यशाला में दिया गया संदेश सिकल सेल एनीमिया को जड़ से खत्म करने के लिए कुंडली नहीं जेनेटिक कार्ड मिलाएं

लखनऊ। जनजाति लोक नायक बिरसा मुंडा की 148वीं जयंती के अवसर पर आयोजित “जनजाति भागीदारी उत्सव” में रविवार 19 नवम्बर को देश की विविधता पूर्ण संस्कृति की झलक एक ही मंच पर देखने को मिली। बीन वादन, जादू कला, कठपुतली, खानपान और हस्तशिल्प प्रदर्शनी भी आकर्षण का केंद्र बनी। इस अवसर पर जनजाति स्वास्थ्य पर परिचर्चा का भी आयोजन किया गया। उसमें संदेश दिया गया कि सिकल सेल एनीमिया को जड़ से खत्म करने के लिए कुंडली नहीं जेनेटिक कार्ड मिलाएं।

जनजाति भागीदारी उत्सव दिखीदेश की सतरंगी सांस्कृतिक छवि

21 नवम्बर तक गोमती नगर स्थित उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी परिसर में आयोजित इस उत्सवके पांचवी सांस्कृतिक संध्या में देश की सतरंगी जनजातीय नृत्य, गायन और वादन की मनोरम झलक देखने को मिली।

अनीता सहगल के संचालन में हुए इस खूबसूरत आयोजन में उत्तराखंड का तांदी नृत्य, हारूल नृत्य, झारखंड का पाइका नृत्य, छत्तीसगढ़ का कर्मा नृत्य और गैड़ी नृत्य, मध्य प्रदेश का गुदुम बाजा नृत्य, उत्तर प्रदेश का झीझी नृत्य, डोमकच नृत्य, होली नृत्य, राजस्थान का सहरिया स्वांग नृत्य, कालबेलिया नृत्य और सिक्किम का सिंघीछम-याकछमपेश किये गए।

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इस अवसर पर ‘जनजातीय स्वास्थ्य पर परिचर्चा एवं सिकल सेल एनीमिया की रोकथाम’ सत्र का संचालन जनजाति विकास विभाग की उपनिदेशक डॉ.प्रियंका वर्मा ने संदेश दिया कि सिकल सेल एनीमिया को जड़ से खत्म करने के लिए कुंडली नहीं जेनेटिक कार्ड मिलाएं, अनुवांशिक एनीमिया परिवहन में रोक लगाएं। ब्लड सेल एनएचएम के महाप्रबंधक रवि दीक्षित ने इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमें अपने आहार और विहार को शुद्ध रखना होगा। संतुलित आहार और स्वच्छता इसका मूल मंत्र है।

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उन्होंने बताया कि चिकित्सा विज्ञान में आई नई तकनीकियों को अपना कर हम बेहतर जिंदगी जी सकते हैं। उन्होंने ऐसी उपचार परंपराओं को छोड़ने का भी संदेश दिया जो वर्तमान में घातक साबित हो रही हैं। उनके अनुसार सरकार सिकल सेल को मिटाने के लिए अभियान चला रही है जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून में मध्य प्रदेशके शहडोल में की थी। इस मिशन का लक्ष्य 2047 तक देश से सिकल एनीमिया को जड़ से खत्मकरना है। उन्होंने बताया कि जनजातीय समुदायों में एनीमिया होने के संभावना 90 प्रतिशत से भी ज्यादा होती है।

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एनीमिया के कारण का जिक्र करते हुए डॉ रवि दीक्षित ने बताया कि यह पोषक आहारों की कमी, थैलेसीमिया, अनुवांशिकी या चोट लगने पर हो सकती है। इसी एनीमिया वाहक रोगी से शादी करने पर भी इसका एक दूसरे में परिवहन होता है. उन्होंने बताया कि यूपी के 17 जनजातीय जिलों में यह अभियान संचालित किया जा रहा है उनमें मुख्य हैं लखीमपुर, ललितपुर, बहराइच, सोनभद्र, देवरिया।

इस अभियान के तहत तीन वर्षों के भीतरइन जिलों में स्क्रीनिंग की जाएगी और लोगों को जागरूक किया जाएगा। इसके साथ ही रोग ग्रसित लोगों का जेनेटिक कार्ड भी बताया जाएगा जिसका उपयोग शादी के वक्त वर-वधु के जेनेटिक कार्ड मिलाने पर किया जाएगा। यह कार्ड-वाहक, सामान्य और रोगी तीन श्रेणियों के होंगे। शादी के वक्त उन जेनेटिक कार्डों का मिलान करना आवश्यक रहेगा ताकि सिकल सेल एनीमिया को अगली पीढ़ी में ट्रांसफर होने से रोका जा सके।

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ब्लड सेल के राज्य समन्वयक डॉ अभिषेक ने बताया कि लोगों को जागरुक होकर अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों में जांच करवानी चाहिए। उनके अनुसार इसका उपचार नि:शुल्क किया जा रहा है। टीआरआई के नोडल अधिकारी देवेन्द्र सिंह ने कहा कि प्रकृति के बेहद करीब रहने से जनजातीय समुदाय के लोग “रॉ फूड” ज्यादा खाते हैं. इसलिए “रॉ फूड” जैसे मूली, फल, खीरा, ककड़ी आदि का सेवन करने से पहले अच्छे तरीके से न केवल उन्हें घो लेना चाहिए बल्कि कोशिश यह भी करनी चाहिए कि गुनगुने पानी से उसे साफ किया जाए। अशुद्ध होने की स्थिति में कीड़े या उनके अंडे उसे खाने के साथ पेट में जा कर व्यक्ति को रोगी बना सकते हैं।

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इस अवसर पर जिला समाज कल्याण अधिकारी शिवम सागर, जिला समाज कल्याण अधिकारी डॉ.आकांक्षा दीक्षित सहित विभिन्न शहरों के जनजाति समुदाय के लोग और विश्वविद्यालय के शोधार्थी उपस्थित रहे। शिल्पमेला में उत्तर प्रदेश का मूँज शिल्प, जलकुंभी से बने शिल्प उत्पाद, कशीदाकारी, बनारसीसाड़ी, कोटा साडी, सहरिया जनजाति उत्पाद, गौरा पत्थर शिल्प, लकड़ी के खिलौने खासतौर से पसंद आ रहे हैं।

इसके साथ ही मध्य प्रदेश की महेश्वरी साड़ी, चंदेरी साड़ी, बांस शिल्प, जनजातीय बीड ज्वेलरी, पश्चिम बंगाल की काथा साड़ी, ड्राई फ्लावर, धान ज्वेलरी, झारखण्ड की सिल्क साड़ी, हैंडलूम टेक्सटाइल्स, तेलंगाना की पोचमपल्ली, साड़ी और चादर, महाराष्ट्र की कोसा सिल्क साड़ी, राजस्थान का सांगानेरी ऍण्ड ब्लाक प्रिंट, छत्तीसगढ़ का लौह शिल्प, ढोकरा एवं बाँस शिल्प, असम का हैंडलूम गारमेंट और सिक्किम का हैंडलूम टेक्सटाइल्स भी आगंतुकों को लुभा रहा है।

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व्यंजन मेला में उत्तर प्रदेश का भुनना आलू चटनी, कुमाऊंनी खाना, मक्खन मलाई, रबड़ी दूध, चाट का स्वाद चखने का अवसर मिल रहा वहीं राजस्थान के व्यंजन, मुंगौड़ी, जलेबी, तंदूरी चाय, जनजातीय व्यंजन, महाराष्ट्र के व्यंजन, मटका रोटी, बिहार के व्यंजन, खाजा, मनेर के लड्डू भी इस आयोजन का स्वाद बढ़ा रहे हैं।

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