लखनऊ, (दया शंकर चौधर)। वक्फ (संशोधन) विधेयक-2024 (Waqf (Amendment) Bill-2024) को लेकर देश के मुस्लिम समुदाय (Muslim community) में गहरी चिंता है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind) जैसी बड़ी संस्था के रुख पर सवाल उठ रहे हैं। पसमांदा मुस्लिम समाज (Pasmanda Muslim Society) के अध्यक्ष अनीस मंसूरी (Anees Mansoori) ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जमीयत जैसी पुरानी और मजबूत संस्था को केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं रहना चाहिए था, बल्कि इसे जमीन पर उतरकर संघर्ष करना चाहिए था।
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मंसूरी ने कहा कि जब सरकार पूरी ताकत के साथ वक्फ संशोधन विधेयक को पारित करने में लगी थी, तब मुस्लिम नेतृत्व केवल खानापूर्ति कर रहा था। उन्होंने सवाल उठाया कि जब जमीयत रामलीला मैदान में बड़ी रैलियां कर सकती है, तो वक्फ संपत्तियों को बचाने के लिए कोई ठोस विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं किया गया?
अनीस मंसूरी ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की दोहरी नेतृत्व प्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह संगठन खुद दो गुटों में बंटा हुआ है। एक तरफ मौलाना महमूद मदनी और दूसरी तरफ मौलाना अरशद मदनी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हुए हैं। जो नेता मुसलमानों को भेदभाव भुलाकर एकजुट करने की अपील करते हैं, उन्हें खुद पहले एक होना चाहिए। अगर जमीयत उलेमा-ए-हिंद वाकई मुस्लिम समाज के हित में काम करना चाहती है, तो उसे अपनी आंतरिक कलह को खत्म कर एकजुटता दिखानी होगी।
मंसूरी ने जमीयत द्वारा वक्फ विधेयक को कानूनी लड़ाई तक सीमित रखने के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह केवल अदालतों में हल होने वाला मामला नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक मुद्दा है। अगर जमीयत ने समय रहते संसद और सड़कों पर मजबूत विरोध दर्ज कराया होता तो सरकार पर दबाव बनाया जा सकता था।
अनीस मंसूरी ने आरोप लगाया कि कुछ धार्मिक संगठन केवल दिखावे के लिए काम कर रहे हैं और वास्तव में उन्होंने इस विधेयक को रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया। उन्होंने कहा कि अगर मुस्लिम नेतृत्व इसी तरह निष्क्रिय बना रहा, तो आने वाले समय में और भी बड़े नुकसान उठाने पड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ वक्फ संपत्तियों का मामला नहीं है, बल्कि भारतीय पसमांदा मुसलमानों के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों का सवाल है।