![राज कुमार सिंह](https://samarsaleel.com/wp-content/uploads/2023/04/IMG-20230408-WA0006-300x300.jpg)
यह तीस साल से कुछ पहले की बात है. साल 1989 से 1991 के बीच की. दूरदर्शन पर एक सीरियल आता था. उड़ान, हां यही नाम था. धारावाहिक एक महिला पुलिस अधिकारी की कहानी पर आधारित था. शायद टीवी पर महिला सशक्तीकरण को दिखाने वाला भी यह पहला धारावाहिक था. इसमें एक ऐसी महिला के संघर्ष को दिखाया गया था जिसने तमाम बाधाओं को पार कर भारतीय पुलिस सेवा में में आने में सफलता पाई थी.
कहानी एक सच्चे चरित्र पर आधारित थी. यह 1973 बैच की आईपीएस कंचन चौधरी भट्टाचार्य पर आधारित थी. कंचन चौधरी देश की पहली महिला डीजीपी थीं. वे उत्तराखंड की डीजीपी रही थीं. टीवी सीरियल में इनका किरदार कविता चौधरी ने निभाया था जो कंचन चौधरी की छोटी बहन थीं. यह सीरियल इसलिए खास है कि इसने देश की तमाम लड़कियों को पुरुषों के प्रभुत्व वाले प्रशानसनिक सेवाओं में जाने के लिए प्रेरित किया था.
सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात
अब आप सोच रहे होंगे कि तीस साल से भी पुरानी कहानी को मैं क्यों दोहरा रहा हूं. दरअसल 7 अप्रैल को उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग 2022 (UPPSC2022) का परिणाम आया है. और इसमें लड़कियों ने इतिहास रच दिया है. टॉप 10 में से 8 लड़कियां हैं, अर्थात 80 फीसदी. टाप मेरिट वाले एसडीएम की कुल 39 सीटों में 19 पर लड़कियां हैं यानि करीब 50 फीसदी. कुल 364 चुने गए अभ्यर्थियों में 110 लड़कियां हैं, अर्थात करीब 30 फीसदी. इनमें से कई लड़कियां मध्यम और छोटे शहरों से हैं. कुल मिलाकर यह एक ऐसी उपलब्धि है जिस पर न सिर्फ देश के सबसे बड़े प्रदेश बल्कि पूरे देश को गर्व है. ऐसा नहीं है कि लड़कियों ने इसके पहले अपनी प्रतिभा का प्रदर्शऩ नहीं किया है.
पावर कारिडोर्स में नारी शक्ति का होगा बेहतर प्रतिनिधित्व
हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाओं में उनका प्रदर्शन विगत कई वर्षों से बेहतर चल रहा है. मेडिकल सेवाओं और शैक्षिक सेवाओं में इनका प्रतिनिधित्व अच्छा है. अब प्रशासनिक सेवाओं में भी आगे आने से पावर कारिडोर्स में नारी शक्ति का बेहतर प्रतिनिधित्व होगा. ये महिलाओं के साथ साथ देश-प्रदेश के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. अपने देश में खासतौर से हिन्दी बेल्ट में प्रशासनिक सेवाएं ताकत का प्रतीक हैं. यूपी और बिहार में आईएएस-आईपीएस और प्रांतीय सिविल सेवाओं का महत्व जग जाहिर है.
बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ जैसे अभियानों का सकारात्मक संदेश
दरअसल यूपी सिविल सेवा में ये बदलाव अचानक नहीं है. अभिभावकों, समाज और सरकार की सकारात्मक सोच भी इसके लिए जिम्मेदार है. बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ जैसे अभियानों का भी सकारात्मक संदेश रहा है. जब भी महिलाएं बड़े पदों पर पहुंचती हैं तो वे पूरे देश की महिलाओं को कुछ करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. राजनीति से लेकर रक्षा क्षेत्र तक में महिलाओं ने कामयाबी के झंडे फहराए हैं.
कई जिलों की डीएम और एसएसपी महिलाएं
दलीय राजनीति से उपर उठ कर देखें तो समय समय पर मायावती, सोनिया गांधी, निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी, ममता बनर्जी समेत अनेक महिलाओं ने लड़कियों को मोटिवेट किया है. वर्तमान समय में यूपी की गवर्नर महामहिम आनंदी बेनपटेल भी समय समय पर लड़कियों को प्रोत्साहित करती हैं. यूपी में इस समय लखनऊ समेत कई मंडलों की कमिश्नर, कई जिलों की डीएम और एसएसपी महिलाएं हैं. सबसे बड़ी बात ये महिलाएं अपने काम को बहुत ही बेहतर ढंग से अंजाम दे रही हैं.
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और अंत में लखनऊ के सुप्रसिद्ध शायर मज़ाज़ लखनवी के मेरे जैसे चाहने वाले इस बात से ख़ुश हैं कि लड़कियों ने अपना परचम लहरा दिया है, जैसा कि आज से करीब 75 साल पहले मजाज़ साहब ने अपने मशहूर शेर में चाहा था-
‘तेरे माथे पे ये आंचल तो बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था.’
लड़कियों ने परचम बना लिया है मजाज़ साहब…आमीन!