• स्नेह, धैर्य व सेवा की मिसाल है नर्सिंग सेवा की यह महिलाएं
• मरीजों की सेवा करना ही है इनके जीवन का लक्ष्य
वाराणसी। फ्लोरेंस नाइटिंगेल को भला कौन नहीं जानता है। क्रीमिया युद्ध में घायल सैनिकों के उपचार के लिए फ्लोरेंस नाइटिंगेल रात के अंधेरे में लालटेन लेकर घायलों की सेवा करने के साथ महिलाओं को नर्सिंग की ट्रेनिंग भी देती रहीं है। यही कारण है कि फ्लोरेंस नाइटिंगेल को ‘लेडी विद द लैम्प’ के नाम से भी जाना जाता है।
हर वर्ष उनके जन्मदिन 12 मई को उन्हें याद करते हुए इस दिन को अन्तर्राष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day) के रूप में मनाया जाता है। फ्लोरेंस नाइटिंगेल तो अब इस दुनिया में तो नहीं हैं लेकिन उन्होंने मानवीय सेवा का जो बीज बोया था उसकी फसल आज विश्व में लहलहा रही है। उनके पदचिन्हों पर चलते हुए आज नर्स जिस तरह से मरीजों की सेवा करती हैं। उसकी वजह से उन्हें स्नेह, धैर्य और सेवा का एक रूप माना जाता है। नर्सिंग सेवा में जुटी ऐसी ही महिलाओं ने काशी में भी अपनी अलग पहचान बना रखी है।
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नर्स की ड्रेस से ऐसे हुआ प्यार- मरीजों की सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना चुकीं राजकीय महिला चिकित्सालय की मैट्रन सुषमा को अपनी पढ़ाई के दौरान नर्स की वर्दी के प्रति आकर्षण तब हुआ जब उनकी मां सर सुन्दर लाल अस्पताल-बीएचयू में भर्ती थी। वह बताती हैं सफेद वर्दी पहने नर्स जब मां की सेवा करती थी तब उनके मन में यह भाव उठता था कि काश एक दिन वह भी इस वर्दी को पहन कर मरीजों की सेवा कर सकें। यह विचार उनके मन में इस कर घर कर गया कि उन्होंने ठान लिया कि अब वह भी नर्स बनेंगी।
वर्ष 1988 में उनका यह सपना पूरा भी हो गया। तब से अब तक वह हजारों मरीजों की सेवा कर चुकी हैं। सुषमा कहती हैं कि मरीजों की सेवा करने में जो सुख मिलता है वह किसी और कार्य में नहीं मिल सकता। जब कोई मरीज उनकी सेवा से ठीक होकर जब अपने घर जाता है तब उसके चेहरे की खुशी देख उन्हें जो शांति मिलती है, उसे वह शब्दों में बयां नहीं कर सकती।
बेटी को भी बनाया नर्स- राजकीय महिला अस्पताल की नर्स आशा का मानना है किसी मरीज की सेवा ही ईश्वर की सेवा होती है। यही कारण है कि नर्सिंग जैसा पवित्र कार्य दुनिया में और कोई नहीं है। इस सोच के चलते ही उनके अलावा उनकी बेटी अंजली भी अब नर्स बनकर बीएचयू ट्रामा सेंटर में मरीजों की सेवा कर रही है।
आशा बताती हैं कि नर्स की ड्रेस से लगाव उन्हें बचपन से ही रहा। बचपन में जब वह किसी अस्पताल में जाती थी तब मरीजों की सेवा कर रही सफेद पोशाक पहने नर्स उन्हें बहुत पसंद आती थी। वर्ष नर्स बनने का उनका सपना वर्ष 1998 में पूरा हुआ। तब से वह मरीजों की सेवा में लगातार जुटी हुई है।
मां व सास की जिम्मेदारी के साथ ही मरीजों की भी सेवा- राजकीय महिला चिकित्सालय में ओटी इंचार्ज सिस्टर दीपिका के घर में उनकी बुजुर्ग सास के साथ मां भी रहती हैं। उनकी देखरेख करने के साथ ही वह अस्पताल में मरीजों की भी सेवा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती हैं। वह बताती है कि आपरेशन थियेटर में प्रसव के लिए जब कोई गर्भवती लायी जाती है तब वह घबरायी हुई होती है।
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खास तौर पर पहले प्रसव में तो यह घबराहट अधिक देखने को मिलती है। आपरेशन थियेटर के बाहर तो उस गर्भवती का पूरा परिवार रहता है लेकिन अंदर तो सिर्फ चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मी ही रहते हैं। ऐसे में उस गर्भवती के माथे को सहलाते हुए हम सभी समझाते हैं। बताते है कि घबराने की जरूरत नहीं, सब ठीक हो जायेगा। महज कुछ पलों में बना यह रिश्ता इतना आत्मीय होता है कि उसे बया करना बड़ा मुश्किल है। ऐसे ही रिश्तों की देन है कि नर्सिंग पेशे को इतना सम्मान मिलता है।
मरीजों की सेवा ही असली पूजा- राजकीय महिला चिकित्सालय की नर्स संगीता सिंह बताती हैं कि बचपन से ही उनके मन में मरीजों की सेवा करने का भाव था। यही कारण था कि उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई की। उनका सपना सच होता भी नजर आया जब उन्हें नर्स की नौकरी मिल गयी। ड्यूटी को वह पूजा मान मरीजों की सेवा में जुट गयीं । वह बताती है कि प्रसव के बाद दर्द से कराहती प्रसूताओं की सेवा करने से उन्हें एक अलग तरह का सुख मिलता है।
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कभी-कभी ऐसी भी प्रसूताएं उनके वार्ड में भर्ती होती है, जिनके परिवार में कोई भी नहीं होता। तब उनकी जिम्मेदारी और भी बढ जाती है। ऐसे मरीजों का उन्हें अलग से ख्याल रखना होता है। मरीज और नर्स के बीच शुरू हुआ ऐसा रिश्ता बाद में ऐसे आत्मीय रिश्ते में बदल जाता है कि अस्पताल से घर जाने के बाद भी मरीज और उसके परिवार के लोग उनके सम्पर्क में रहते हैं। उनकी पूरी कोशिश होती है कि मरीज उनके सेवा व समर्पण भाव को सदा याद रखे।
रिपोर्ट-संजय गुप्ता