आस्था का महापर्व छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जायेगा।एक मात्र ऐसा पर्व जिसमें डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। चार दिवसीय यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है। यह पर्व दीपावली के कुछ दिन बाद आता है। हर साल छठ पूजा का आरंभ कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से हो जाता है और सप्तमी तिथि पर इसका समापन होता है।
पहले दिन नहाय-खाय की परंपरा के साथ इस पर्व की शुरुआत होती है और दूसरे दिन खरना की रस्म पूरी की जाती है। छठ पूजा के तीसरे दिन यानी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसका बाद चौथे दिन सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व का समापन हो जाता है।
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हिंदू धर्म में उगते हुए सूर्य को तो हर कोई जल या अर्घ्य देता है। लेकिन छठ पूजा के दौरान तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जायेगा। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
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इस दिन शाम के समय किसी तालाब या नदी में खड़े होकर व्रती डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि डूबते समय सूर्य देव अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ में होते हैं। इस समय अर्घ्य देने से जीवन में चल रही हर समस्या दूर हो जाती है और सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
डूबते सूरज को अर्घ्य देने का मुख्य कारण यह बताया जाता है कि सूरज का ढलना जीवन के उस चरण को दर्शाता है, जब व्यक्ति की मेहनत और तपस्या के फल प्राप्ति का समय आता है।
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डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में संतुलन, शक्ति और ऊर्जा बनी रहती है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देना यह दर्शाता है कि जीवन में हर उत्थान के बाद पतन होता है। और हर पतन के बाद एक नया सवेरा होता है। भगवान भाष्कर की आराधना की जाती है।
परिवार में सुख शांति समृद्धि बनी रहती है। पारिवारिक जीवन सुखमय होता है। भगवान आदित्य देव को शाम के समय अर्घ्य अर्पित किया जायेगा। संतानों को लम्बी आयु प्राप्त हो। परिवार में खुशहाली बनी रहे। आरोग्यता के लिए भी प्रार्थना की जायेगी। कुछ व्रती संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करेंगीं। कहा जाता है कि व्रत धारण करने वाली महिलाओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह