मुंबई की पहचान में से एक वहां की काली-पीली टैक्सी की हालत खराब है। इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि अप्रैल से लेकर नवंबर के बीच वहां के आरटीओ ऑफिस में एक भी काली-पीली टैक्सी का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है। कहा जा रहा है कि काली-पीली टैक्सी की स्लो डेथ हो रही है।
हालांकि अप्रैल से नवंबर के बीच 8 महीनों मे यहां ऑटो की संख्या बढ़ी है। इन 8 महीनों में यहां 10,000 से ज्यादा ऑटो के रजिस्ट्रेशन हुए और इसी के साथ यहां ऑटो की संख्या लगभग 2.23 लाख पहुंच गई। साल 2016 में इनकी संख्या 1.19 लाख थी जो कि तीन सालों में 87 परसेंट बढ़ी है।
सूत्रों के मुताबिक काली-पीली टैक्सी के यूनियन का कहना है कि सड़कों पर इनकी संख्या घटी है और इनमें टैक्सी की संख्या 1000 घटकर 20,000 से 19,000 हो गई है। काली-पीली टैक्सी के कई ड्राइवर एप आधारित ओला और उबर में शिफ्ट होते जा रहे हैं। मुंबई में इस समय लगभग 80,000 कैब हैं। लगभग हर महीने 500 नए कैब का रजिस्ट्रेशन हो रहा है।
नई पीढ़ी के ड्राइवर सरकारी बैज के लिये आवेदन कर रहे हैं लेकिन वो काली-पीली गाड़ी चलाने को तैयार नहीं है। वो ऑटो रिक्शा चलाने को तैयार हैं जो कि उनके लिये ज्यादा प्रॉफिट देने वाला है। ऑटो रिक्शा यूनियन के एक सदस्य के मुताबिक ड्राइवरों को मुंबई उपनगर में लगभग 100 शेयर ऑटो स्टैंड हैं जहां से उन्हें सामान्य से 33 फीसदी ज्यादा आय होती है। उन्होंने कहा कि शेयरिंग ऑटो से ड्राइवर और यात्री दोनों को फायदा है। इसमें एक ऑटो में तीन लोग शेयर कर सकते हैं जिससे किराया भी कम होता है।