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करे कोई भरे कोई

बात पिछले साल 2020 फरवरी माह की है उस वक्त मेरे पास कक्षा 5 थी। अगले ही महीने मार्च 2020 में वार्षिक परीक्षाएं आयोजित होनी थी परंतु कोरोना महामारी के चलते वार्षिक परीक्षाओं से पहले ही सभी विद्यालय सरकार द्वारा बंद कर दिए गए और संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई। मेरी कक्षा के अधिकतर बच्चे स्कूल के आस-पास ही रहते थे। लॉकडाउन के चलते अधिकतर बच्चों के अभिभावकों का रोजगार छूट गया और उन्हें वापस अपने पैतृक गांव जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। सरकार के दिशा निर्देशों के अनुसार सभी बच्चों को उस वर्ष बिना वार्षिक परीक्षा दिए ही पिछली परीक्षाओं के आधार पर अगले कक्षाओं में प्रमोट कर दिया गया।
कक्षा छठी में दाखिला शुरू हुआ और लगभग 15 दिनों के पश्चात दाखिला इंचार्ज का मेरे पास फोन आया कि मैडम आप की पांचवी कक्षा के 35 विद्यार्थियों में से केवल 17 विद्यार्थियों ने ही छठी कक्षा में दाखिला लिया है। मुझे बड़ी हैरानी हुई।मेरे पास अधिकतर बच्चों के मोबाइल नंबर थे , अत: मैंने उनके अभिभावकों को फोन करके कारण जानना चाहा। पता चला कि दाखिला लेने वाले 18 बच्चों में से 16 बच्चे अपने अभिभावकों के साथ अपने पैतृक गांव में रह रहे थे और उन्होंने फिलहाल छठी कक्षा में दाखिला लेने से मना कर दिया क्योंकि उस वक्त सभी को शिक्षा से अधिक जरूरी अपनी जान थी। मुझे बच्चों की खैर खैरियत जान तसल्ली हुई। 35 में से शेष बचे दो बच्चे जिनका मोबाइल नंबर लगातार स्विच ऑफ बता रहा था ।मुझे बेचैनी हो रही थी कि उन दोनों बच्चों का पता अब मैं कैसे लगाऊं। अनेक बार कोशिश करने के बावजूद भी जब उन बच्चों से मेरा संपर्क नहीं हो पाया तो फिर मैंने उन्हें फोन मिलाना बंद कर दिया।
पिछले महीने की 28तारीख अर्थात 28 जून को मेरे पास एक अजनबी नंबर से कॉल आई। अपनी आदत के अनुसार मैंने नंबर को अजनबी जान फोन नहीं उठाया। परंतु उसी नंबर से जब दोबारा कॉल आई तो मुझे लगा कि शायद कोई जरूरी फोन होगा इसलिए मैंने फोन उठाया और बात खत्म होने पर भी फोन को अपने काम से हटा ना सकी, मैं निशब्द हो गई।
दोस्तों जानते हैं क्या आप जानते हैं वह कॉल किस की थी। जी हां…वह कॉल मेरे उन्हीं 2 विद्यार्थियों में से 1 विद्यार्थी के पिताजी की थी जिन्होंने बताया कि मेरे छात्र अर्थात उनका इकलौता बेटा हम सभी को छोड़कर इस दुनिया से चला गया है। कोरोना महामारी की चपेट में आकर मई माह में बच्चे ने अपने प्राण त्याग दिये क्योंकि उसके लिए परिवारजन समय पर ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं करवा पाए थे।
सच कहूं तो आज लगभग एक महीने बाद भी मेरे कानों में उस अभिभावक के वह शब्द गूंज रहे हैं और मेरी आंखों से अनियंत्रित अश्रुधारा बही जा रही है। सच ही कहा गया है कि प्राकृतिक आपदाओं पर किसी का बस नहीं चलता। प्रकृति में असंतुलन पैदा करने के लिए हम सभी सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं, जिसका खामियाजा कुछ मासूमों को भरना पड़ता है।
     पिंकी सिंघल

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