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लेबाइल डायबिटीज से पा सकते है ऐसे छुटकारा

ब्रिटल डायबिटिज या लेबाइल डायबिटीज, मधुमेह का वह प्रकार है जिसमें ब्लड शुगर के स्तर में बार-बार उतार-चढ़ाव होता रहता है. अधिकतर मामलों में यह टाइप 1 मधुमेह का ही जटिल रूप होता है-एक दीर्घकालिक ऑटोइम्यून बीमारी जिसमें शरीर खुद इन्सुलिन नहीं बना पाता.

पूरी संसार में लगभग तीन करोड़ लोग टाइप-1 मधुमेह से पीड़ित हैं. डायबिटीज एटलस 2017 के मुताबिक हिंदुस्तान में 25 साल की आयु से कम के 1 लाख 28 हजार से भी ज्यादा युवा टाइप-1 मधुमेह के रोगी हैं. एक अन्य आकलन के मुताबिक हिंदुस्तान में टाइप-1 मधुमेह के रोगियों की संख्या 70 लाख के करीब है. उचित उपचार न किए जाने पर मधुमेह खून बहाने वाली नसों, आंखों, दिल, किडनी  दिमाग को नुकसान पहुंचा सकता है. यह बात खासतौर पर ब्रिटल डायबिटीज के मरीजों पर ज्यादा लागू होती है.

कैसे कार्य करती है इन्सुलिन

जब हम कुछ खाते हैं तो हमारा शरीर इन्सुलिन पैदा करता है जो शर्करा (शुगर) को रक्तप्रवाह से पर्सनल सेल्स तक पहुंचाकर ऊर्जा पैदा करने में मदद करती है. इन्सुलिन पाचन क्रिया से मिले अलावा ग्लुकोज को ग्लायकोजेन में परिवर्तित कर लिवर में एकत्रित करती है, ताकि भोजन के बाद के वक्त में हमारा ऊर्जा का स्तर बना रहे. जब शरीर इन्सुलिन का उत्पादन नहीं करता (जैसे टाइप-1 मधुमेह में) या बहुत कम उत्पादन कर रहा है या इंसुलिन रोधी (टाइप-2 मधुमेह) हो तो, तो ग्लूकोज को खून से सेल्स तक पहुंचाने का कोई जरिया ही नहीं बचता. हाइपरग्लाइसेमिया या खून में ग्लुकोज की ज्यादा मात्र हमारी नर्व्स  किडनी, आंखों जैसे अंगों को बेकार कर सकती है.

टाइप-1 मधुमेह के रोगियों को नियमित तौर पर ब्लड ग्लुकोज की जाँच करते रहना चाहिए, ब्लड शुगर में बेहद गिरावट या उछाल दोनों ही खतरनाक होते हैं.

ब्रिटल डायबिटीज की जटिलताएं

अनियंत्रित मधुमेह गंभीर हाइपोग्लाइसेमिया, हाइपरग्लाइसेमिया  डायबेटिक कीटोएसिडोसिस की वजह बन सकता है. स्थिति बिगड़ने में बहुत ज्यादा वक्त लेने की बजाय ब्रिटल डायबिटीज में बहुत तेजी से स्थिति बिगड़ती है  कई बार तो बिना किसी पूर्व चेतावनी के. ब्रिटल डायबिटीज को आमतौर पर टाइप-1 मधुमेह से ही जोड़कर देखा जाता है. अधिकतर जटिलताएं एक-दूसरे से गड्डमड्ड हो जाती हैं.

हाइपोग्लाइसेमिया या ब्लड शुगर कम हो जाने की परेशानी तब आती है जब मरीज बेहद इन्सुलिन ले लेता है या जब वह अपना इन्सुलिन का डोज आहार  अभ्यास के प्रोग्राम के मुताबिक तय नहीं करता. गंभीर हाइपोग्लाइसेमिया, मधुमेह के मरीज को कोमा तक में भेज सकता है  मृत्यु तक की वजह बन सकता है. हालांकि ऐसा बहुत कम मामलों में होता है.

डायबेटिक कीटोएसिडोसिस में शरीर इन्सुलिन की कमी होने पर शरीर के वसा  मांसपेशियों को प्रयोग करने लगता है.  इसमें शरीर  दिमाग के लिए पर्याप्त मात्र में ग्लुकोज नहीं होता. वसा के चयापचय प्रक्रिया (मेटाबोलिज्म) का एक सहायक उत्पाद कीटोन्स, खून को एसिडिक बनाता है  डायबेटिक कीटोएसिडोसिस की वजह बनता है.

टाइप-1 मधुमेह के रोगियों को नियमित तौर पर ब्लड ग्लुकोज की जाँच करानी चाहिए. अगर ब्लड शुगर 250 मिलीग्राम प्रति डेसिलीटर से ज्यादा हो तो वह हाइपरग्लाइसेमिया का इशारा है  उससे डायबेटिक कीटोएसिडोसिस का खतरा  बढ़ जाता है. मधुमेह से जुड़ी आम समस्याओं की सूची इस प्रकार है-

किडनी: ब्लड शुगर में एकाएक उछाल वृक्कीय विफलता (रेनल फेल्युअर) की वजह बन सकता है. पेशाब में एल्बुमिन (एक तरह का प्रोटीन) की ज्यादा मात्र को डायबिटिक नेफ्रोपैथी का शुरुआती लक्षण माना जाता है. किडनी में जब समस्या होती है, तो वह इस प्रोटीन को बेहद मात्रा में छोड़ने लगती है.

धमनियां: धमनियों को छोटे (छोटी रक्त नलिकाओं) से लेकर बड़े स्तर पर मधुमेह से नुकसान पहुंचता है. यह आगे चलकर हमारी आंखों, किडनी  नसों को प्रभावित करता है.

दिल: अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के मुताबिक मायोकार्डियल इन्फेक्शन (दिल का दौरा) टाइप-1 मधुमेह के रोगियों की मृत्यु की सबसे प्रमुख वजह है.

आंखें: मधुमेह का आंखों पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. कुछ मामलों में रेटिना को नुकसान पहुंचता है, कुछ मामलों में तो मरीज अंधा भी होने कि सम्भावना है. टाइप-1 के मधुमेह रोगियों में कैटरेक्ट से भी ज्यादा मुद्दे रेटिनोपैथी के देखने को मिलते हैं.

नर्व्स: नर्व्स को नुकसान हमारे हाथ-पैरों में संवेदनाओं को समाप्त कर सकता है. ज्यादा गंभीर मामलों में ऑटोनामिक फंक्शन (हृदयगति, पाचन, श्वसन जैसी क्रियाओं का स्वत: संचालन करने की प्रणाली) बुरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं. रिकरंट हाइपोग्लाइसेमिया (जब ब्लड शुगर बार-बार कम हो जाती हो) नसों में संवेदना के समाप्त होने का प्रमुख कारण है, जैसे पैरों की संवेदना. छोटी रक्त वाहिनियां नर्व्स को पोषण पहुंचाती हैं, इसलिए अगर रक्त वाहिनियों को नुकसान पहुंचता है तो नर्व्स को नुकसान पहुंचना तय सा है. ऐसी स्थिति में मरीज को दर्द, कमजोरी या झुनझुनी का अहसास भी होने कि सम्भावना है.

ब्रिटल डायबिटीज को लेकर डॉक्टरों की कोई मानक परिभाषा नहीं है. इस स्थिति को सामान्य शब्दों में ब्लड शुगर के कम (हाइपोग्लाइसेमिया) से एकाएक ज्यादा (हाइपरग्लाइसेमिया) हो जाना बताया जाता है. या यूं कहें कि यह एक अनियंत्रित टाइप-1 मधुमेह है जो डायबेटिक कीटोएसिडोसिस जैसे जानलेवा खतरों में तब्दील होने कि सम्भावना है.

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