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एकमात्र अवतार ही मनुष्यों को मुक्त कर सकते हैं-मुक्तिनाथानन्द

स्वामी जी ने कहा- ईश्वर दर्शन से भक्तगण करें अपना जीवन सार्थक
जीवन की विषमताओं के मध्य आशा की किरण है सत्संग

लखनऊ। रविवार की प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी ने बताया कि स्वयं ईश्वर जब मानव शरीर धारण करके अवतार रुप से आते हैं तब जो मुक्ति लाभ करना चाहते हैं, ऐसे मुमुक्षु व्यक्तिगण पर कृपा करके उनको मुक्ति प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि नरेंद्रनाथ प्राथमिक जीवन में ‘ईश्वर के अवतार तत्व’ में विश्वास नहीं करते थे, वह कहते थे अनंत ईश्वर एक सीमित मानव शरीर में अपनी शक्ति समेट करके अवतीर्ण नहीं हो सकते एवं मानव की मुक्ति के लिए अवतार की जरूरत भी नहीं है। जबकि श्री रामकृष्ण के एक अन्य भक्तगण यह मानते थे कि युग-युग में भगवान मनुष्य शरीर धारण करके अवतरण करते है।

अवतार की प्रयोजनीयता का उल्लेख करते हुए श्री रामकृष्ण के एक भक्त गिरीशचंद्र नरेंद्र से बोला था- “मनुष्य में उनके अवतार न हो तो समझाए कौन? मनुष्य को ज्ञान-भक्ति देने के लिए वह देह धारण करते हैं। नहीं तो शिक्षा कौन देगा?” नरेंद्रनाथ ने बताया- “क्यों? वे अन्तर में रहकर समझाएंगे।” श्री रामकृष्ण ने नरेंद्रनाथ की बात का समर्थन करते हुए कहा- “हाँ, हाँ, अंतर्यामी के रूप से वे समझाएंगे।” लेकिन अंतर्यामी रूप में भगवान जब सूक्ष्म रूप में हमारे भीतर विराजमान रहते हैं तब उनका निर्देश हमारा मन व बुद्धि अशुद्ध होने के कारण समझने में असमर्थ हो जाते हैं। इसलिए भगवान स्वयं मनुष्य शरीर धारण करके हमारे बीच आते हैं एवं उनके जीवन तथा आचरण के भीतर से ईश्वर तत्व सबको समझा देते हैं तथा पथनिर्देश करते हैं। कैसे साधारण जीव अवतार का अनुसरण करते हुए ईश्वर को प्राप्त कर सके। लेकिन जब तक वो अवतार हमारे बीच आकर हमें हाथ पकड़कर उनकी ओर नहीं ले जाएंगे तब तक हमें इंतजार करना पड़ेगा।

स्वामी जी ने बताया कि श्रीमद्भगवद्गीता में भी (7.14) यह बात श्री कृष्ण ने कहा, “मेरी त्रिगुणात्मिका अलौकिक माया को अतिक्रम करना दुःसाध्य है लेकिन जो मेरी शरण में आ जाते हैं, वे बहुत आसानी से माया से उत्तीर्ण हो जाते हैं।” स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी ने बताया कि यद्यपि ईश्वर लाभ ही जीवन का उद्देश्य है तब इस जीवन में ही वो उद्देश्य सफल करने के लिए हमें कोई भी अवतार यथा श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्धदेव एवं श्री रामकृष्ण आदि की शरण में चले जाना चाहिए एवं उनकी जीवनी तथा वाणी को अनुसरण करते हुए उनकी कृपा से इस जीवन में ही ईश्वर दर्शन करते हुए जीवन सार्थक कर लेना चाहिए।

   दया शंकर चौधरी

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