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उम्मीदवार चयन से विपक्ष का उपहास

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव हेतु उपयुक्त उम्‍मीदवार चयन में विपक्ष नाकाम रहा है. उसके राष्ट्रपति उम्मीदवार के वादे तो उपहास बन कर रहे गए थे. अस्सी वर्षीय मारग्रेट अल्वा राजनीतिक परिदृश्य से ओझल रही हैं. पिछले आठ वर्षों से कांग्रेस के भीतर ही उनका कोई नाम लेने वाला नहीं था. अपने पुत्र को विधानसभा टिकट ना मिलने से भी नाराज थीं. राष्ट्रपति उम्मीदवार जसवंत सिन्हा ऐसे वादे कर रहे थे जो भारतीय राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र से बाहर थे.

ऐसा लग रहा था जैसे वह भारत नहीं बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे हों. अमेरीका में अध्यक्षातमक शासन व्यवस्था है. वहाँ राष्ट्रपति कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख होता है. भारत में संसदीय शासन प्रणाली है. यहां राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख मात्र होता है. वह मंत्रिमण्डल की सलाह से कार्य करता है. इस प्रकार विपक्ष के उम्मीदवार वैचारिक रूप से भी मुकाबले की स्थिति में नहीं थे. मारग्रेट अल्वा आठ वर्ष पहले सक्रिय राजनीति से अलग हो चुकी थी. अस्सी वर्ष की उम्र में उन्हें चुनावी मैदान में उतारना समझ से परे है. कर्नाटक की राजनीति में ही उनकी कोई भूमिका नहीं रह गई थी. दूसरी तरफ जगदीप धनखड़ अपनी संवैधानिक सक्रियता के लिए देश में चर्चित रहे हैं. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में उन्होंने संवैधानिक निष्ठा की मिसाल कायम की हैं. यह संवैधानिक सक्रियता की धाकड़ पारी थी.पश्चिम बंगाल की प्रतिकूल और अराजक परिस्थिति के बाद भी वह अपने दायित्व से विचलित नहीं हुए.

विधानसभा चुनाव के बाद यहां राजनीतिक हिंसा का दौर शुरू हुआ था. सत्ता पक्ष का कैडर भाजपा समर्थकों का हिंसक उत्पीड़न कर रहा था. सरकारी मशीनरी इनके सामने मूक दर्शक थी. ऐसे में राज्यपाल धनकड़ ने अपने स्तर से सभी प्रयास किए थे. वह पीड़ितों से मिल कर सान्त्वना दे रहे थे.अधिकारियों को दंगाइयों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई का निर्देश दे रहे थे. लेकिन ममता बनर्जी सरकार के अधिकारी लापरवाह बने रहे. राज्यपाल की यात्रा के दौरान सड़क पर सामन्य यातायात रोका जाता है. लेकिन यहां राज्यपाल जब दंगा पीड़ितों से मिलने जाते थे, तब तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ता उनका मार्ग अवरुद्ध करते थे. वह नहीं चाहते थे कि राज्यपाल पीड़ितों से मिलें.भाजपा के कार्यकर्ताओं व कार्यालयों पर हमला हो रहा था. प्रदेश सरकार तमाशा देख रही है. ऐसे में राज्यपाल की जिम्मेदारी बढ़ गई थी. जगदीप धनखड़ ने सक्रियता के साथ अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी का निर्वाह किया. राज्य की स्थिति से केंद्र को अवगत कराना राज्यपाल का संवैधानिक अधिकार व कर्तव्य है. राज्यपाल जगदीप धनखड़ इस दिशा में अपने स्तर से प्रयास किए. उन्होंने पुलिस महानिदेशक व कोलकाता पुलिस कमिश्नर से तत्काल रिपोर्ट तलब की थी.

इन अधिकारियों ने राज्यपाल से मुलाकात कर कार्रवाई का आश्वासन दिया था. किंतु तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सामने सरकारी तंत्र लाचार था. क्योंकि वह मुख्यमंत्री को नाराज नहीं करना चाहते थे. राज्यपाल को कहना पड़ा कि रिपोर्ट्स भयावह स्थिति को दर्शाती हैं। भयभीत लोग खुद को बचाने के लिए भाग रहे थे. उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को स्थिति संभालने के निर्देश दिए थे.राज्यपाल ने ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री की चिंता से अवगत कराया था। कहा था कि राज्य में हिंसा बर्बरता,आगजनी, लूट और हत्याएं बेरोकटोक जारी हैं। इस पर नियंत्रण अपरिहार्य है। केंद्र सरकार को इसे रोकने के लिए अपने अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए।पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी का आचरण संविधान विरोधी था. सत्ता पक्ष अपने विरोधियों में भय का संचार करना चाहता था। यह राजनीति की कम्युनिस्ट शैली थी, जिसे तृणमूल ने अपना लिया था.पश्चिम बंगाल में अराजकता और डर का माहौल रहा है। राज्य की कानून व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है. पश्चिम बंगाल के जंगल महल क्षेत्र में माओवादियों और अपराधियों की सक्रियता भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जो कि चिंता का विषय है.

अपराधियों और नक्सलियों के छुपने के लिए जंगल महल एक सुरक्षित स्थान बन गया है। राज्य सरकार लापरवाह है. पुरुलिया में कोल माफिया और रेत माफिया प्रशासन की शह पाकर खुले तौर पर अवैध कारोबार कर रहे हैं। जिन परिवारों ने भाजपा का समर्थन किया था। उन्हें चुनाव बाद हुई हिंसा में अपने प्रियजन को खोना पड़ा है। पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा के करीब पंद्रह हजार मामले हुए। इनमें पच्चीस लोगों की जान गई। सात हजार से अधिक महिलाओं का उत्पीड़न हुआ। फैक्ट फाइंडिंग कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में पाया था कि पूरी हिंसा के दौरान बंगाल पुलिस पूरी तरह से मूकदर्शक बनी रही। जो लोग तृणमूल कांग्रेस को छोड़ कर अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए काम कर रहे थे, उनके आधार कार्ड और राशन कार्ड तक छीन लिए गए। ख़ास तौर में दलित व वनवासी महिलाओं और कमजोर लोगों को निशाना बनाया गया। गृह मंत्रालय की ओर से पोस्ट इलेक्शन वायलेंस पर बनाई गई फैक्ट फाइंडिंग कमिटी में सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके जस्टिस प्रमोद कोहली, केरल के पूर्व चीफ सेक्रेटरी आनंद बोस, कर्नाटक के पूर्व अतिरिक्त सचिव मदन गोपाल,आईसीएसआई के पूर्व अध्यक्ष निसार चंद अहमद और झारखंड की पूर्व डीजीपी निर्मल कौर शामिल थे.

बांग्लादेश के घुसपैठियों के लिए पश्चिम बंगाल सर्वाधिक सुरक्षित स्थान है। इसमें हिंसक प्रवृत्ति के रोहिंग्या भी शामिल थे। इन सबको खूब बढ़ावा मिला। इनके कारण सौ से अधिक विधानसभाओं में भय का माहौल बनाया गया था। इस स्थिति में जगदीप धनखड़ ने कार्य किया. राज्यपाल संवैधानिक प्रधान होता है. राज्य में उसकी भूमिका सीमित होती है. प्रदेश शासन का संचालन मुख्यमंत्री करता है. फिर भी राज्यपाल ने हिंसा पीड़ितों को राहत दिलाने में सक्रियता से कार्य किया. जगदीप धनखड़ का जन्म राजस्थान में झुंझुनू जिले के किठाना गांव में एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। वह राजस्थान उच्च न्यायालय में वकील रहे हैं. राजस्थान हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष बन गए थे। बार कौंसिल के भी सदस्य रहे है। धनखड़ सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील भी रह चुके हैं. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन पेरिस के सदस्य हैं। राजस्थान के जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग में आरक्षण दिलाने में धनखड़ की उल्लेखनीय भूमिका रही थी। उनके मुकाबले के लिए विपक्ष ने अस्सी वर्षीय मारग्रेट अल्वा को उतारा है.

उनका जन्म कर्नाटक के मंगलुरू में हुआ था. वह पांच बार सांसद और चार बार केंद्र सरकार में मंत्री रहीं है. यूपीए की सरकार के दौरान उन्हें उत्तराखंड का राज्यपाल बनाया गया था. इसके बाद वह गुजरात, राजस्थान की भी राज्यपाल रहीं. उनके नाम की घोषणा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार ने की. सत्रह दलों ने सर्वसम्मति से अल्वा को मैदान में उतारने का फैसला किया है. वह तृणमूल कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी के समर्थन से वह कुल उन्नीस पार्टियों की संयुक्त उम्मीदवार होंगी। मतलब उनको उम्मीदवार बनाने की प्रक्रिया में दो पार्टियां शामिल नहीं थी. राष्ट्रपति उम्मीदवार तय करते समय काग्रेस को दरकिनार कर दिया गया था. ममता बनर्जी ने यशवन्त सिन्हा को कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों पर थोप दिया था.उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार चयन में कांग्रेस ने खेला किया है. उसने शरद पवार को विश्वास में लेकर उम्मीदवार घोषित कर दिया गया. उसे पता था कि ममता बनर्जी का जगदीप धनखड़ से छत्तीस का आंकड़ा है. उनके विरोध में वह किसी के भी समर्थन हेतु तैयार हो जाएंगी.

वस्तुतः विपक्ष जितने के लिए नहीं एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगा है.यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने कर्नाटक सहित दक्षिण और पूर्वोत्तर के ईसाइयों को प्रभावित करने के लिए मारग्रेट अल्वा को उम्मीदवार बनवाया है. उसकी नजर अगले अगले साल होने वाले
त्रिपुरा,मेघालय,नगालैंड मिजोरम और तेलंगाना के चुनावों पर है.इसके बाद आन्ध्र प्रदेश ओडिशा,अरुणाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में चुनाव होंगे. इन राज्यों में ईसाई मतदाता भी हैं. इसलिए उपराष्ट्रपति चुनाव को पराजय की संभावना के बाद भी कांग्रेस ने मारग्रेट अल्वा को उम्मीदवार बनवाया है. जबकि राजग ने किसानों और पिछड़ा वर्ग को सन्देश दिया हैं.

(उपरोक्त, लेखक के निजी विचार हैं…..!!)

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