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छठ उत्सव में श्रद्धा व उत्साह

डॉ दिलीप अग्निहोत्री
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

भारत उत्सवधर्मी है। ऐसा उत्साह व विविधता दुनिया में अन्यत्र दुर्लभ है। प्रायः सभी पर्व किसी न किसी रूप में प्रकृति से जुड़े है। प्रकृति में बेशुमार रंग है। यह भारतीय पर्वों में भी परिलक्षित होते है। सब मिल कर एक सुंदर उपवन की भांति सुशोभित होते है। भारत में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की समृद्ध परंपरा व संस्कृति है। प्रकृति के साथ मानव के जुड़ाव का सन्देश देने वाला छठ पर्व इसी समृद्ध परम्परा का जीवन्त उदाहरण है।

लखनऊ में भी उत्साह व श्रद्धा के साथ छठ पर्व मनाया गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इसमें सहभागी हुए। छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोक पर्व है। अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया। यह आस्था के साथ प्रकृति व परमात्मा से जुड़ने का पर्व भी है। इसमें पर्यावरण संरक्षण का विचार भी समाहित है।

छठ कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है,इसीलिए इसे छठ कहा जाता है। इस चार दिवसीय उत्सव की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन ‘नहाय खाय’ से होती है, अगले दिन ‘खरना’ होता है, तीसरे दिन छठ का प्रसाद तैयार किया जाता है और स्नान कर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, सप्तमी को चौथे और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

पुराणों में पष्ठी देवी का एक नाम कात्यायनी भी है। नवरात्र षष्ठी पर इनकी आराधना होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य देवता की बहन छठी मैया संतानों की रक्षा कर उन्हें लंबी आयु प्रदान करती हैं। प्रातःकाल सूर्य की पहली किरण उषा और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर दोनों को नमन किया जाता है।

यह पर्व सूर्य,उनकी पत्नी उषा तथा प्रत्यूषा, प्रकृति,जल,वायु और सूर्य की बहन छठी मैया को समर्पित है। उषा तथा प्रत्यूषा को सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत माना गया है। इसीलिए छठ पर्व में सूर्य तथा छठी मैया के साथ इन दोनों शक्तियों की भी आराधना की जाती है। षष्ठी देवी को ही छठ मैया कहा गया है।

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