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जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का पता लगाने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय बनाएगा योजना

केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान तथा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने बुधवार को कहा कि जलवायु जोखिम प्रबंधन की मजबूत व्यवस्था से देश भर में कई आयाम पर काम किया जाएगा। वे ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी–नीति–जलवायु परिवर्तन प्रबंधन के लिए नीति और व्यवहार’ विषय पर आयोजित तीन दिन के सम्मेलन के विशेष सत्र को संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन नई दिल्ली में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के साथ मिलकर किया है।

इस मौके पर  केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान के तहत आपदा अनुकूल तथा टिकाऊ योगदान विकसित करने में मदद के लिए जलवायु योजना में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने यह भी कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने जलवायु परिवर्तन के एक अंग के रूप में राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना के दो राष्ट्रीय मिशन को कार्यान्वित करने में प्रमुख उपलब्धियां हासिल की हैं।

दो मिशन के तहत विभिन्न आकार की 200 परियोजनाओं को सहायता दी जा रही है, जिनमें 15 सेंटर ऑफ एक्सलेंस, 30 प्रमुख अनुसंधान और विकास कार्यक्रम, 14 नेटवर्क कार्यक्रम, जिनमें लगभग 100 परियोजनाएं, 6 कार्यबल, 25 राज्य जलवायु परिवर्तन केन्द्र आदि शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि पिछले 6 वर्ष में प्रभावशाली पत्रिकाओं में 1500 अनुसंधान प्रकाशित किए गए। 100 से अधिक नई तकनीक विकसित की गई हैं और लगभग 50 हजार लोगों को इन मिशन के तहत प्रशिक्षित किया गया है। 1200 से अधिक वैज्ञानिक और विद्यार्थी इन मिशन की परियोजनाओं में काम कर रहे हैं।

भारत उन कुछ देशों में शामिल है जिनमें भूकम्प, चक्रवाती तूफान, बाढ़, सुनामी, गरज के साथ बारिश, ओलावृष्टि, बिजली गिरने और लू आदि जैसी हर प्रकार की आपदाएं आती हैं। संशोधित चेतावनी प्रणाली ने लोगों के जान गंवाने में कमी लाने में बहुत मदद की है।

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