जिसकी शायरी अपने बदन पर हिंदी का लिबास ओढ़ती है और जो अपने होंठों पर उर्दू की लाली लगाती है, उस शायर की पहचान न केवल गंगा-जमुनी तहज़ीब की मौजों की हिफ़ाज़ात करना है बल्कि अपने मुल्क की गाँव-गलियों में घटने वाली हर दिन की मुसलसल परेशानियों के सबब को ...
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