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मौनी हादसे की राष्ट्रपति को साढ़े सात घंटे बाद दी थी सूचना, 3 फरवरी 1954 को गई थी सैकड़ों की जान

प्रयागराज:  महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर हुए हादसों को लेकर सरकार और विपक्षी दलों के बीच संसद से लेकर विधानसभा तक संग्राम छिड़ा हुआ है। योगी सरकार जहां विपक्षी दलों पर हमले के लिए नए-नए विशेषण और उपमाएं खोज ला रही है तो विपक्षी भी पूरी जीवटता से खामियों की परतें उधेड़ने में लगे हुए हैं।

आरोप यह भी है कि घटना को घंटों छुपाए रखा गया, मौत के आंकड़े (30) भी घटाकर बताए गए। वैसे, हादसे की सच्चाई का पता लगाने में न्यायिक आयोग की तीन सदस्यीय टीम एक महीने से लगी ही है, लेकिन ऐसे आरोप या जांच पहली बार नहीं है।

आजादी के बाद लगे पहले महाकुंभ के पन्ने उलटने पर भी सिर्फ कालखंड का ही फर्क दिखाई देता है। तीन फरवरी 1954 को मौनी अमावस्या के दिन हुए इस हादसे में सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी।

तत्कालीन अधिकारियों ने कुंभ में कल्पवास कर रहे राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को सूचना देने में ही साढ़े सात घंटे लगा दिए थे। 8 फरवरी 1954 के अंक में “यूपी सरकार की कार्यक्षमता का कमाल” शीर्षक से प्रकाशित खबर में खूब तंज कसे थे। लिखा, यूपी सरकार की शासकीय मशीनरी अपनी कार्य क्षमता के लिए सारे देश में अपना नाम पैदा कर रही है।

बताया जाता है कि पूर्ण कुंभ के पर्व पर जो महान दुर्घटना हुई है, उसकी अधिकृत सूचना राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को शाम पांच बजे के पहले नहीं दी गई, जबकि वह घटनास्थल से तीन मील दूर ठहरे हुए थे।
इस समाचार को राष्ट्रपति तक पहुंचाने में सरकारी मशीनरी को साढ़े सात घंटे लग गए। राष्ट्रपति को यदि इस दुर्घटना का पता लग जाता तो शायद वह उस प्रीतिभोज में भाग न लेते, जो उनके सम्मान में यूपी के राज्यपाल ने दिया था। ऐसा क्यों किया गया, इसे नौकरशाही ही जाने !

स्थानीय लोगों ने भी कराई थी जांच, वीआईपी कल्चर को बताया था जिम्मेदार
सरकार ने 1954 के कुंभ हादसे की जांच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश कमलाकांत वर्मा की अध्यक्षता में कमेटी गठित की थी। समिति में यूपी के पूर्व सलाहकार डॉ. पन्नालाल व सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर एसी मित्रा को बतौर सदस्य रखा गया था।

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