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विश्व हीमोफीलिया दिवस : दस हजार में से एक पुरुष में होता है Hemophilia

कानपुर। हीमोफीलिया (Hemophilia) आनुवंशिक रोग है जिसमें शरीर के बाहर बहता हुआ रक्त जमता नहीं है। इसके कारण चोट या दुर्घटना में यह जानलेवा साबित होती है क्योंकि रक्त का बहना जल्द ही बंद नहीं होता। अत्यधिक मात्र मैं रक्तस्राव होने से रोगी के शरीर में विकृति एवं कमजोरी आ जाती है। आमतौर पर ऐसे मरीजों को क्लोटिंग फ़ेक्टर कि दवाएं दी जाती हैं। हीमोफिलिया को लेकर जागरूकता के लिए हर वर्ष 17 अप्रैल को विश्व हीमोफिलिया दिवस मनाया जाता है। यह विश्व फेडरेशन ऑफ़ हीमोफिलिया की एक पहल है। इस वर्ष की थीम “सभी के लिए पहुंच देखभाल के वैश्विक मानक के रूप में रक्तस्राव की रोकथाम” है।

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जिला अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ शिव कुमार बताते है कि यह रोग माँ बाप से बच्चे पर आता है यानी यह रोग अनुवांशिक होता है। इस रोग से पीड़ित लोगों में क्लोटिंग फैक्टर अर्थात खून के थक्के बनना बंद हो जाते हैं। सामान्य लोगों में जब चोट लगती है तो खून में थक्के बनाने के लिए ज़रूरी घटक खून में मौजूद प्लेटलेट्स से मिलकर उसे गाढ़ा कर देते हैं। इस तरह खून अपने आप बहना बंद हो जाता है, लेकिन जो लोग हीमोफिलिया से पीड़ित होते हैं, उनमें थक्के बनाने वाला घटक बहुत कम होता या होता ही नहीं है।

Hemophilia

इसलिए उनका खून ज्यादा समय तक बहता रहता है। अक्सर इस रोग का पता आसानी से नहीं चलता है, जब बच्चे के दांत निकलते हैं और खून बहना बंद नहीं होता तब इस बीमारी के बारे में पता चल सकता है। इसीलिये गर्भधारण से पूर्व माता और पिता का मेडिकल चेकअप होना बहुत आवशयक है। इस तरह से समय रहते इलाज होना संभव होता है। बीमारी पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती है।

इस रोग को जाने

नेशनल हेल्थ पोर्टल के अनुसार लगभग दस हज़ार पुरुषों में से एक पुरुष को हीमोफिलिया होने का खतरा रहता। महिलाएं इस रोग के वाहक के रूप में ज़िम्मेदार होतीं हैं।

पहचाने हीमोफीलिया के इन लक्षणो को

  • शरीर लाल, नीले, काले गांठदार चकतते
  • जोड़ों में सिहरन महसूस करना
  • सूजन, दर्द या त्वचा गरम हो जाना
  • मांसपेशिओ में दर्द या असपष्ट तकलीफ
  • चिडचिड़ापन, उल्टी, दस्त, एंथन, चककन आदि आना
  • सांस लेने में समस्या
  • खून या काला गाढ़े घोल जैसे पदार्थ कि उल्टी करना

बरतनी होती हैं यह सावधानियाँ

  1. प्राथमिक इलाज के तौर पर चोट लगे भाग पर बर्फ की सिंकाई करना।
  2. चोट को क्रेप बेंडेज से बांध कर ऊंचा रखें।
  3. एनासिन या एस्परीन साल्ट वाली दवाओं का सेवन नहीं करना चाहिए, यह रक्तस्राव को बढ़ा देती हैं।
  4. मांसपेशिओ में सुई नहीं लगवानी चाहिए।
  5. बीमारी के लक्षण पता होने के बाद चिकित्सीय परामर्श में विलंब नहीं करना चाहिए।

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर

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