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साहित्य/वीडियो

पिंकी सिंघल

तितली रानी तितली रानी तितली रानी,कहो कहां से आई हो तुम इतने रंग रंगीले पंख कहो कहां से लाई हो मकरंद तुमको बहुत ही भाता,यह बतलाने आयी हो फुदक फुदक कर फूलों पर तुम,हम सबके दिल को भायी हो प्रखर तुम्हारी सूंघ क्षमता,तुम दृष्टि तेज अति पाई हो हम बच्चों ...

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विश्वास

विश्वास वादों पर विश्वास किया रस्ता भी था क्या। आशाओं की गठरी लेकर चलना भी तो था। बाधाएं तो आती रहती तरह तरह की आँख मिचौली इनसे बच बच राह सँवारी मोह पाश के ऐसे बंधन रुकना भी था।

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संचालक निर्धारक कोई तो होगा

संचालक निर्धारक कोई तो होगा अखिल ब्रह्माण्ड विवेचक, रक्षक कोई तो होगा, संचालक, निर्धारक, निर्णायक कोई तो होगा! दिन-प्रति दिन, प्रति पल पालनकर्ता कोई तो होगा, लाख चौरासी योनि, अण्डज-पिण्डज का निर्माता कोई तो होगा! वह निराकार, आकार, सम्यक, सकल, ध्वनि, प्रकाश, कुछ तो होगा, आकाश अनंत, पाताल लोक, वेग ...

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वो शायर जो सबसे अलग हैं…

जिसकी शायरी अपने बदन पर हिंदी का लिबास ओढ़ती है और जो अपने होंठों पर उर्दू की लाली लगाती है, उस शायर की पहचान न केवल गंगा-जमुनी  तहज़ीब की मौजों की हिफ़ाज़ात करना है बल्कि अपने मुल्क की गाँव-गलियों में घटने वाली हर दिन की मुसलसल परेशानियों के सबब को ...

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सफर

सफर ये उदासी का सफर कब तक रहें यूं दरबदर बोझिल हुए अपने कदम ढूढते मंजिल किधर।। ये उदासी का सफर। व्यर्थ ही बीते प्रहर धूप छांव सब कहर पांव के कांटे निकाले अनवरत व्यथित मन पीड़ित है तन।। ये उदासी का सफर।

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बुलंद इरादे

बुलंद इरादे अपनत्व के दावे चांद तारे तोड़ लाने और जान की बाजी लगाने के वादे बहारों में मन को है बहलाते लेकिन पतझड़ में अलग होने लगते है साथ देने वाले बन जाते है बेगाने फिर बेरुखी की बातें दूर हो जाती है गलतफहमी खुल जाती है आंखें ना ...

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खुद पर रोशनी कम डालिए, तभी तो दूसरों को देख पाओगे

लोहड़ी और मकर सक्रांति आ रहे हैं। ये नए साल के ये पहले त्योहार हैं। पुराने साल के ज्यादातर त्योहार हम मना नहीं पाए। पुराने साल की कड़वी यादें सभी के पास हैं, पर अच्छी बात यह है कि हम सभी का वह खराब समय गुजर गया। नए साल की ...

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मौन का संगीत

मौन का संगीत अब किसी के दिल में बस कर फिर कहीं जाना ना हो। जिंदगी की धूप छांव चाहे तीखी हों हवाएं साथ चलते ही रहें कोई अनजाना ना हो।। धड़कनों का राग अपना मौन का संगीत कितना चल रही है गीत लहरी राग बेगाना ना हो।। फिर कहीं ...

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चांद और स्मृति

चांद और स्मृति विस्तृत, अनंत, शांत नभमंडल में, काली घटा की कालिमा घटाकर। नीरवता को समेटे शनै:शनै: विचरता, पूर्ण रात्रि का अर्द्ध-चन्द्र। अनगिनत प्रेमी प्रेमिकाओं के प्रेम संदेश लिए, भटक रहा है, यत्र-तत्र हल्कारे-सा। उसके इस भटकाव की सहचर हैं, निहारिका परिवार की असंख्य तारिकाएं। उसकी धवल चांदनी में, टटोलती ...

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मैं शहर हूं

◆◆ मैं शहर हूं ◆◆  हाँ, मैं शहर हूँ जागा हुआ रहता रात भर हूं चैन की नींदें कहां भाग्य मेरे व्यस्तता ही रहती हमेशा साथ मेरे चाहता हूं मैं भी कभी हो सवेरा ऐसा जब ना कोई बेसबर हो शांति भरी हो रातें और सुनहरी सी सहर हो सड़कों ...

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