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संचार माध्यमों का सामाजिक दायित्व

       डॉ दिलीप अग्निहोत्री

संचार में फ़िल्मों की भूमिका कम नहीं होती. इस पर नियन्त्रण के लिए सेंसर बोर्ड होता है. लेकिन अनेक दृश्यों गीत पटकथा संवाद आदि पर इसका अंदाज बेपरवाह बोर्ड जैसा प्रतीत होता है. बेशक अभिव्यक्ति की आजादी है. लेकिन सभ्य समाज में इसकी भी मर्यादा होती है. होनी चाहिए भी.किसी की अस्था पर हमला अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में नहीं आता.

प्रहार करने वाले की भी अपनी कोई अस्था होती है. उसे भी क्रिया और प्रतिक्रिया के सिलसिले को समझना चाहिए. यह अंतहीन हो सकता है. यह समाज हित प्रतिकूल होता है. इसके दोहरे मापदंड नहीं हो सकते.तुष्टीकरण को सेक्यूलर नहीं कहा जा सकता. भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में इन बातों का ध्यान रखना  चाहिए. भारतीय चिन्तन जैसी उदारता दुनिया में कहीं भी नहीं. वसुधा कुटुंब मानने वाली अन्य कोई भी सभ्यता संस्कृति नहीं है. भारत की विविधता में एकता इसी विचार पर आधारित है. इसका सम्मान होना चाहिए.ऐसे ही मसलों पर फिल्म सोशल मीडिया को लेकर प्रश्न उठते हैं. आदि काल से यहां भगवा रंग को महत्त्वपूर्ण माना गया. सूर्योदय के समय वातावरण तेजस्वी होता है. भारतीय ऋषि उसमें देवत्व के दर्शन करते हैं. उन्हें प्रणाम करते. त्याग तप के प्रतीक रूप में भगवा को धारण करते हैं.यह सही है कि अनेक लोगों ने भगवा धारण करने के बाद भी मर्यादा संयम का पालन नहीं किया. लेकिन इस तर्क से भगवा का महत्त्व कम नहीं होता. युगों युगों से चली आ रही अस्था कम नहीं होती. इसलिए किसी फिल्म में अश्लीलता दिखाने के लिए इस रंग का प्रयोग करना शरारतपूर्ण है. संचार माध्यमों का भी सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्व होता है.

किसी भी रूप में इन माध्यमों से जुड़े लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए. समाज और राष्ट्र के प्रति उनकी जबाबदेही का निर्धारण होना चाहिए. अभिव्यक्ति की आजादी अराजक नहीं हो सकती. इसके दुष्परिणाम होते हैं. इस संदर्भ में पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल का बयान देखना दिलचस्प है. उसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाया. वह यहीं तक नहीं रुका. उसने भगवा और हिन्दू आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया. कहा कि यह जानकारी उसे भारत से ही मिली है.

उसके पूरे झूठे बयान में यही एक बात सही है. यूपीए सरकार के कार्यकाल को याद कीजिए. दिग्विजय सिंह चिदंबरम, मणि शंकर अय्यर आदि नेताओं ने भगवा और हिन्दू आतंकवाद का शब्द गढ़ा था. उन्होंने कम्युनिस्टों के साथ मिल कर इसको प्रसारित करने का बाकायदा अभियान चलाया था.बिना किसी आधार के अनेक लोगों का उत्पीड़न किया गया. यह क्रम कई वर्षों तक चला. इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि पाकिस्तान जैसा आतंकी मुल्क भी मनमोहन सिंह सरकार को नसीहत देने लगा. उसका कहना था कि भारत सरकार पहले भगवा आतंकवाद रोके.

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इस प्रकार संचार के सेक्यूलर माध्यमों ने भारतीय हितों के प्रतिकूल कार्य किया था. बिलावल भुट्टो ने अपने बयान में यूपीए काल में किए गए दुष्प्रचार को ही आधार बनाया था.उसने कहा कि कोई भी शब्दाडंबर भारत में ”भगवा आतंकवाद” के अपराधों को छुपा नहीं सकता. सत्ताधारी पार्टी की राजनीतिक विचारधारा हिंदुत्व ने नफ़रत, अलगाव और सज़ा से बचाव के माहौल को जन्म दिया है.

”बिलावल के इस बयान पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. भारत की राजनीति में यह बयान नया नहीं है.बिलावल का नाम हटा दें तो ऐसा लगेगा जैसे यह राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, मल्लिकार्जुन खडगे आदि का बयान है. आतंकी संगठनों को संरक्षण और प्रशिक्षण देने वाला पाकिस्तान भारत पर आरोप लगा रहा है. उसके विदेश मन्त्रालय ने कहा कि भारत की हिंदुत्व आधारित राजनीति में सज़ा से बचाव की संस्कृति गहराई से जुड़ी हुई है.

दिल्ली-लाहौर समझौता एक्सप्रेस पर हुए घिनौने हमले के दोषी और मास्टरमाइड को छोड़ दिया गया. इस हमले में भारत की ज़मीन पर चालीस पाकिस्तानी मारे गए थे. ये आरएसएस-बीजेपी के तहत न्याय के नरसंहार को दिखाता है.’भारत पीड़ित होने का झूठ रचता है लेकिन वो खुद भारत के अवैध रूप से कब्ज़े वाले जम्मू और कश्मीर में दमन का अपराधी है. वो खुद दक्षिण एशिया में आतंकी समूहों का प्रायोजक और फाइनेंसर है. पाकिस्तान का यह दुष्प्रचार समझना होगा. वह उन्हीं बातों को आधार बना रहा है जो उसे भारतीय विपक्ष से हासिल हुए हैं. यह राष्ट्रवादी मीडिया या सोशल मीडिया के लिए चिंता का विषय होना चाहिए.

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भारत में एक तरफ अपने को सेक्यूलर बताने वाला मीडिया है. हिन्दू अस्था पर किसी न किसी रूप में प्रहार करना इसका एक मात्र एजेंडा है. राष्ट्रवादी संचार माध्यमों को इसका मुकाबला करना है. भारत ने ठीक जबाब दिया कि पाकिस्तान की टिप्पणियां उसका एक नया निचला स्तर है।पाकिस्तान के विदेश मंत्री की हताशा उनके अपने देश में आतंकवादी गुटों के मास्टरमाइंडों के खिलाफ होनी चाहिए, जिन्होंने आतंकवाद को अपनी राज्य नीति का हिस्सा बना लिया है। पाकिस्तान को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है। संचार माध्यमों में तथ्य भी सत्य पर आधारित होना चाहिए. तथ्यों में जीवन मूल्यों की झलक भी होनी चाहिए.

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