पिछले रविवार की तरह आज सुबह भी घना कोहरा था। भीषण ठंड थी। प्रपंच चबूतरे पर सन्नाटा था। मैं सीधे चतुरी चाचा के मड़हे में पहुंच गया। वहां तख्त पर कम्बल ओढ़े चाचा विराजमान थे। आम की सूखी मोटी लकड़ियां अलाव में धधक रही थीं। मैं अलाव के किनारे पड़ी ...
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