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चंद्रशेखर आजाद का स्मरण

रिपोर्ट-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

देश के लिए अपना जीवन बलिदान करने वाली महान विभूतियों में चंद्रशेखर आजाद भी शामिल थे। उनकी राष्ट्रभक्ति आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरणा देती रहेगी। विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने अपने निर्वाचन क्षेत्र भगवंत नगर के ग्राम बदरका में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में उनके प्रति श्रद्धासुमन अर्पित किए।इस अवसर पर विधि मंत्री बृजेश पाठक सहित स्थानीय लोग उपस्थित रहे।

चंद्रशेखर आजाद उन्नाव जिले के गांव में बदरका में हुआ था। उनके पिता सीताराम तिवारी अकाल के कारण गांव छोड़कर मध्यप्रदेश चले गए थे। वहीं पर उनकी परवरिश हुई। किशोरावस्था में ही वह स्वतन्त्रता संग्राम में शामिल हो गए थे। मात्र चौदह वर्ष की उम्र में वह गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे।

आंदोलन के दौरान वह गिरफ्तार किये गए। जज ने उनका नाम पूंछा। उन्होंने अपना नाम आजाद बताया। वस्तुतः इस नाम से वह अंग्रेजों की अदालत को सीधा सन्देश देना चाहते थे। वह बताना चाहते थे कि आजादी से कम कुछ भी उन्हें अपने जीवन में मंजूर नहीं है। तभी से उनका नाम चंद्रशेखर आजाद हो गया। इसी नाम से वह लोकप्रिय हुए। गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन बंद करने से वह सहमत नहीं थे।

इसलिए कांग्रेस को छोड़कर क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हुए। उनका मानना था कि अंग्रेजों को उन्हीं की शैली में जबाब देना होगा। इस विचार के साथ आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बने।

उन्होंने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर काकोरी कांड की रणनीति बनाई। यह ब्रिटिश शासन को सीधी चुनौती थी। लाला हरदयाल की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह व उनके साथियों के साथ मिलकर अंग्रेज सुपरिण्टेण्डेण्ट सांडर्स को गोली से उड़ा दिया।

इलाहाबाद में पुलिस ने उन्हें घेर लिया और उनके पास सिर्फ एक गोली बची थी। आजाद ने कसम खा रखी थी कि वो कभी भी जिंदा अंग्रेजों के पकड़ में नहीं आएंगे। अपने को गोली मार कर वह देश के लिए शहीद हो गए।

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