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भारत की शिक्षा व्यवस्था कैसी होनी चाहिए ? सरस्वती विद्या मंदिर के कार्यक्रम में बोले भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने गुरुवार को विद्या भारती द्वारा संचालित सरस्वती विद्या मंदिर वीरपुर सुपौल के नवनिर्मित भवन का लोकार्पण किया। इस कार्यक्रम में भारत नेपाल सीमा क्षेत्र के कार्यकर्ता एवं नागरिक गण उपस्थित रहे। इस दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत की छत्रछाया में पूरी दुनिया सुख शांति का मार्ग प्रशस्त कर सके, ऐसी शिक्षा व्यवस्था बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि विद्यालय चलाना आजकल व्यापार है, लेकिन भारत में शिक्षा पैसा कमाने का माध्यम नहीं है। उन्होंने कहा कि शिक्षा पेट भरने के लिए नहीं होती, पेट तो पशु-पक्षी भी अपना भरते हैं। मनुष्य अपना और अपने परिवार का ही अगर पेट भरे तो फिर शिक्षा का अर्थ क्या रह जाएगा। शिक्षा मनुष्य को मनुष्य बनाने का काम करती है।

 

‘विद्यालय चलाना आजकल व्यापार है’

सरसंघचालक ने कहा कि कार्य से भाग्य अपने अनुकूल होता है, जो भी आप कर रहे हैं उसका अधिष्ठान सत्य पर आधारित होना चाहिए। कार्य ऐसा हो जो लोक मंगलकारी हो। किसी भी कार्य की सफलता के लिए अलग-अलग प्रकार के विविध प्रयास करने पड़ते हैं। हमें लोक कल्याण की भावना को लेकर कार्य करना चाहिए और कार्य की सफलता के लिए पुरुषार्थ करना होगा। भाग्य को अनुकूल बनाने के लिए हमें योग्य कर्ता बनना होगा। उन्होंने कहा कि विद्यालय चलाना आजकल व्यापार है, लेकिन भारत में शिक्षा पैसा कमाने का माध्यम नहीं है। उन्होंने कहा कि शिक्षा पेट भरने के लिए नहीं होती, पेट तो पशु पक्षी भी अपना भरते हैं। मनुष्य अपना और अपने परिवार का ही अगर पेट भरे तो फिर शिक्षा का अर्थ क्या रह जाएगा। शिक्षा मनुष्य को मनुष्य बनाने का काम करती है।

‘शिक्षा ऐसी जो अपनेपन का भाव भरे’

विद्या भारती विद्यालयों के विषय में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि विद्या भारती के 21000 से अधिक विद्यालय संपूर्ण देश में चल रहे हैं, जो विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण के लिए कार्य कर रहे हैं। विद्या भारती की उपलब्धि पर यूएनओ ने इसे 20 बिलियन क्लब में शामिल करने की भी बात कही है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य एक अच्छा शिक्षित, सुसंस्कृत व्यक्ति बनाना होता है जो अपने परिवार, गांव और देश को भी ऐसा बनाने का प्रयास करे। शिक्षा ऐसी हो जो व्यक्ति में स्वार्थ नहीं, बल्कि अपनेपन का भाव भरे। संपूर्ण भारत एक है, हम सब एक भूमि के पुत्र हैं, यही सोच समाज में जानी चाहिए।

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‘शिक्षा ऐसी जो मनुष्य को मनुष्य बना सके’

शिक्षा के लक्ष्य के बारे में सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि शिक्षा ऐसी हो जो मनुष्य को मनुष्य बना सके। भारत में हमेशा त्याग की पूजा की जाती है। आज धनपति तो बहुत हो रहे हैं, लेकिन भारत में उनकी कहानी नहीं बनती। दानवीर भामाशाह की कहानी बनती है, जिसने स्वतंत्रता के लिए राणा प्रताप को धन दिया था। दशरथ मांझी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि दशरथ मांझी ने समाज कल्याण के लिए बहुत कुछ किया, जिसके चलते उन्हें आज समाज याद करता है। उन्होंने लोक कल्याण के लिए पहाड़ को खोद दिया। भारत में ऐसा करने वाले अनेक लोग हैं, जिनका अनुकरण हमें करना चाहिए। भारत की छत्रछाया में पूरी दुनिया सुख शांति का मार्ग प्रशस्त कर सके, ऐसी शिक्षा व्यवस्था बनानी चाहिए।

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