सबरीमाला मंदिर में महिलाएं प्रवेश कर सकेंगी या नहीं इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पिछले साल ही सुना दिया था। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा था कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को गैर धार्मिक कारणों से रोकना वाजिब नहीं है। इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में रिव्यू पेटिशन दायर किया गया। अब आज यानी 14 नवंबर को इस रिव्यू पेटिशन पर फैसला आना है।
बता दें कि कोर्ट के फैसले से पहले मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा हुआ था। अब आज इस मसले पर फैसला आएगा तो ऐसे में इस मंदिर के इतिहास के बारे में जान लेते हैं। साथ ही जानते हैं भगवान अयप्पा के बारे में भी जिनकी पूजा यहां होती है और वह मान्यता क्या है जिसे लेकर महिलाओं का प्रवेश इतने सालों तक यहां वर्जित रहा। इससे पहले कि इन सभी चीजों के बारे में जाने, आइए सबसे पहले पिछले साल के कोर्ट के फैसले के बारे में जान लेते हैं।
क्या था पिछले साल आया फैसला-
सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच 4:1 के बहुमत से दिए फैसले में मंदिर में युवा महिलाओं को जाने से रोकने को लिंग के आधार पर भेदभाव कहा था। कोर्ट ने आदेश दिया था कि मंदिर में जाने से किसी महिला को नहीं रोका जा सकता। बेंच की इकलौती महिला सदस्य जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने बहुमत के फैसले का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि धार्मिक मान्यताओं में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। हिंदू परंपरा में हर मंदिर के अपने नियम होते हैं।
धार्मिक मान्यता क्या है-
केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम से करीब 100 किलोमीटर दूर सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा की पूजा होती है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक उन्हें नैसिक ब्रह्मचारी माना जाता है। इसलिए सदियों से वहां युवा महिलाओं को नहीं जाने की परंपरा रही है। साथ ही मंदिर की यात्रा से पहले 41 दिन तक पूरी शुद्धता बनाए रखने का नियम है। मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों के लिए 41 दिन तक शुद्धता बनाए रखने के व्रत का पालन संभव नहीं है, इसलिए भी वह वहां नहीं जातीं।
क्या है मंदिर का इतिहास-
सबरीमाला मंदिर केरल स्थित एक बड़ा मंदिर है। यहां भगवान अयप्पा की पूजा की जाती है, कहा जाता है कि यह मंदिर 800 साल पुराना मंदिर है। यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी दूर स्थित है। सबरीमाला मंदिर दूनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है।
सबरीमाला में अयप्पा स्वामी का मंदिर है। भगवान अयप्पा के पिता शिव और माता मोहिनी हैं। शिव और विष्णु से उत्पन होने के कारण भगवान अयप्पा को ‘हरिहरपुत्र’ कहा जाता है। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।
सबरीमाला मंदिर दूसरे मंदिरों से कितना अलग है-
जहां एक ओर सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक है तो वहीं भगवान अयप्पा के अन्य दूसरे मंदिर में ऐसा नहीं है। केरल में अयप्पा के कई और मंदिर हैं जहां महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं है। दिल्ली के आरकेपुरम में भी भगवान अयप्पा का एक मंदिर है। कुलतुपुजा शष्ठ मंदिर, अचनकोली मंदिर भी अयप्पा के ही हैं जिसमें महिलाओं के प्रवेश पर कोई रोक नहीं है। सभी के बारे में फेसबुक, यूट्यूब या ट्रैवल वेबसाइट पर ढेरों तस्वीरें और वीडियो मिल जाते हैं। जिनमें अच्छी खासी तादाद में महिलाएं मंदिर में दिखती हैं।
मान्यता है कि मालिकापूरथम्मा अयप्पा से शादी करना चाहती थीं, मगर अयप्पा के ब्रह्मचर्य के कारण नहीं कर सकीं इसलिए सबरीमाला के पास एक दूसरे मंदिर में उनकी पूजा होती है। मगर त्रावणकोर के ही अचनकोविल श्रीधर्मस्थल मंदिर में अयप्पा की एक वैवाहिक अवतार के रूप में स्थापना है। वहां उनकी दो पत्नियां पूर्णा और पुश्कला हैं साथ ही उनका बेटा सात्यक है। इसके अलावा भारत में ऐसा होना असंभव नहीं है कि बालब्रह्मचारी माने जाने वाले भगवान के मंदिर में महिलाएं प्रवेश न करती हो। बालब्रह्मचारी माने जाने वाले हनुमान जी का भी तेलंगाना में मंदिर है। उनके मंदिर में महिलाओं के जाने पर रोक नहीं है।
मंदिर में प्रवेश का हक लेने के लिए लड़ी लंबी लड़ाई-
- साल 1990 में केरल हाईकोर्ट में महिलाओं को एंट्री देने को लेकर एस महेंद्रन ने याचिका दायर की।
- 5 अप्रैल 1991 केरल हाईकोर्ट ने 10 से 50 साल की महिलाओं की सबरीमाला मंदिर में एंट्री पर रोक की पुष्टि की और इसे बरकरार रखा।
- 2006 सुप्रीम कोर्ट में इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने औरतों के मंदिर में बैन को हटाने के लिए याचिका दायर की। ये याचिका इस आधार पर फाइल की गई कि ये नियम भारतीय संविधान की धारा 25 का उल्लंघन करता है जिसके तहत धर्म को मानने और प्रचार करने की आजादी मिलती है।
नवंबर 2007-
केरल में लेफ्ट सरकार ने महिलाओं की एंट्री पर बैन लगाने के सवाल को समर्थित करने की जनहित याचिका पर एक एफिडेविट फाइल किया।
जनवरी 2016-
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर बैन की प्रैक्टिस पर सवाल उठाए।
7 नवंबर 2016-
लेफ्ट सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि वो सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश दिलाने के पक्ष में है।
13 अक्टूबर 2017-
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश देने संबंधी केस को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को भेजा गया।
26 जुलाई 2017-
पंडालम राज परिवार ने महिलाओं के प्रवेश को लेकर डाली गई याचिका को चुनौती दी। उन्होंने इसे हिंदू आस्था के खिलाफ बताया। उनकी तरफ से वकील ने कोर्ट में बताया कि मंदिर के देवता भगवान अयप्पा शाश्वत ब्रह्मचारी हैं लिहाजा पीरियड्स के दौर से गुजरी रही महिलाओं को मंदिर के प्रांगण में प्रवेश नहीं दिया जाना चाहिए।
28 सितंबर 2018-
सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी दे दी. महिलाओं को रोकने संबंधी कानून आर्टिकल 25 (क्लॉज 1) और रूल 3 (बी) का उल्लंघन करता है।