गयाकोटा Gyakota में पुण्यसलीला क्षिप्रा के तट पर कई पौराणिक महत्व के पुरातन मंदिर और स्थल मौजूद है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ पूजन-अर्चन के शास्त्रोक्त विधान को भी पूर्ण करते हैं। अवंतिकापुरी में गृहदोष के निवारण से लेकर जिंदगी की परेशानियों का हल निकालने वाले मंदिर स्थित है। उज्जैन के मंदिरों का प्राचीन धर्मग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है।
उज्जैन में Gyakota है
ऐसा ही एक पौराणिक महत्व का स्थल उज्जैन में गयाकोटा Gyakota है, जहां पितरों का तर्पण कर मोक्ष के कामना के साथ सुख-समृद्धि की उपासना की जाती है। स्वयं श्रीकृष्ण ने इस स्थल की स्थापना की थी इसलिए महाकाल की नगरी में इसका महत्व और बढ़ जाता है।
शास्त्रों में अवंतिकापुरी को श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली होने का गौरव प्राप्त है। गयाकोटा श्रीकृष्ण की गुरूदक्षिणा की अनूठी मिसाल है। एक जनश्रुति के अनुसार श्रीकृष्ण जब शिक्षा पूर्णकर मथुरागमन करने वाले थे उस वक्त वह गुरूमाता से विदा लेने के लिए उनके आश्रम गए।
गुरूमाता से गुरूदक्षिणा लेने की विनती की।गुरूमाता ने गुरूदक्षिणा में अपने सात मृत पुत्रों को जीवित करने की इच्छा प्रगट की। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि माता मैं आपके एकमात्र जीवित पुत्र, जिसको गदाधर राक्षस ने बंदी बना रखा है सिर्फ उसको वापस ला सकता हूं। क्योंकि जीवन तो नश्वरता का महासागर है और एक न एक दिन हम सभी को मोहमाया से मुक्त होकर इहलोक को छोड़कर परलोक में जाना है।
श्रीकृष्ण ने गदाधर राक्षस का वध कर
इसके बाद श्रीकृष्ण ने गदाधर राक्षस का वध कर गुरूपुत्र को मुक्त कराया और साथ ही गदाधर को मोक्ष भी प्रदान किया। तभी से इस स्थल का नाम गयाकोटा पड़ा। अवंतिकापुरी के मोक्षतीर्थों में एक प्रमुख नाम गयाकोटा का आता है। इसके पश्चात गुरूमाता ने कहा कि केशव आपके गुरू नदी पार नहीं कर सकते इसलिए उनके दिवंगत पुत्रों की मुक्ति के लिए गयातीर्थ को यहीं पर प्रगट करें। तब श्रीकृष्ण ने सप्तऋषियों की साक्षी में गुप्त रूप से गया तीर्थ और फल्गू नदी को गयाकोटातीर्थ पर प्रगट किया और सिद्धवट पर क्षिप्रा नदी में संगम करवाया।
इसलिए माना जाता है कि ञषितलाई में फल्गु नदी का जल है और यहां श्राद्धकर्म करनेवाला व्यक्ति ऋषितलाई में स्नान कर श्राद्धकर्म करता है। इस प्रकार खाकचौक में ऋषितलाई स्थित गयाकोटा तीर्थ का अत्यधिक शास्त्रोक्त महत्व है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार गयातीर्थ में मातृगया और पितृगया है, जबकी गयाकोटा में मोक्षगया है अर्थात गयाकोटा में पितृकर्म करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां पर आदिगया और विष्णुपादतीर्थ है। गयाकोटा में शेषशायी विष्णु की सोलह चरणपादुकाएं विद्यमान है। इस स्थान पर महर्षि सांदीपनि नें अपने पुत्रों का श्राद्धकर्म किया था और उनको मोक्ष दिलवाया था। श्रीकृष्ण ने सप्तऋषियों कि उपस्थिति में गयातीर्थ और फल्गु नदी को प्रगट किया था इसलिए यहां पर सप्तऋषि मंदिर भी है।