एक कौआ रोता हुआ पेड़ की डाल पर बैठा काँव काँव कर रहा था। थोड़ी दूर पर दूसरा कौआ उसकी परेशानी देख बोला, भाई तुम क्यूँ रो रहे हो ? अपनी व्यथा मुझसे कहो। शायद मैं दूर कर सकूँ “तुम मेरी परेशानी दूर नही कर सकते, कोई भी नही। हमें भगवान ने ऐसा ही बनाया है…उपेक्षित!”
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क्यूँ ?ऐसी क्या बात है ?
देखा नही हमारा रंग और उससे भी ज़्यादा भद्दी आवाज़ है। कमसे कम कोयल जैसी मीठी आवाज़ ही होती तो उसके जैसा प्यार भी हमें मिलता।
थोड़ी देर दूसरा कोआ बैठ कर सोचता रहा। फिर उड़कर गया और दो पत्ते एक हरा और दूसरा सूखा लेकर आया और बोला, “देख संसार में हर चीज़ क्षण भंगुर है। ये जो हरा पत्ता आज हरा है कल सूखना है। इस सूखे पत्ते की तरह ही। ठीक इसी प्रकार जीवन है। हमें जीवन में सार्थक कार्य करते रहना चाहिए। जिससे हमारा कर्म ज़िंदा रहे। काया तो सबकी मिटनी है। “
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पहला कौआ ख़ुश होता हुआ बोला.. “तू ठीक कहता है। हम ही तो प्राण दायक पीपल, बढ़ के वृक्ष के जन्म दाता हैं। चल हमारे द्वारा ही तो खाए जाने पर फिर बीट द्वारा इनका बीज पृथ्वी पर गिरकर नया वृक्ष पनपता है”, तो फिर चल ना बैठकर समय नष्ट क्या करना कार्य करते हैं।
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