पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद भारत ने हर ओर से चीन पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है और इसका सबसे ज्यादा नुकसान चीन की कंपनियों को उठाना पड़ रहा है. केन्द्र सरकार ने चीन की कंपनियों के लिए ऐसे नियम बना दिए हैं जिसके बाद उनके लिए देश में कोई भी सरकारी टेंडर आसानी से मिल पाना संभव नहीं होगा.
जानकारी के अनुसार गुरुवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जनरल फाइनेंशियल नियम 2017 में संशोधन किया है. इस संशोधन के बाद अब भारत की सीमा से लगने वाले हर उस देश की कंपनी को भारत में किसी सरकारी टेंडर में बिड करने की अनुमति तभी मिलेगी जब कंपनी के पास गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय से राजनीतिक और सुरक्षा क्लीयरेंस मिल चुका होगा.
आदेश के तहत भारत की सीमा से लगे देशों का कोई भी आपूर्तिकर्ता भारत में सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए वस्तुओं, सेवाओं (परामर्श और गैर-परामर्श सहित) की आपूर्ति के अनुबंध या परियोजना कार्यों के लिये तभी बोली लगा सकेगा जब वह उचित प्राधिकरण के पास रजिस्टर्ड होगा.
विदेश और गृह मंत्रालय से मंजूरी जरूरी- इसमें कहा गया है कि रजिस्ट्रेशन के लिये उचित प्राधिकरण उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग द्वारा गठित पंजीकरण समिति होगी. इसके लिये विदेश और गृह मंत्रालय से राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी मंजूरी अनिवार्य होगी.
आदेश के दायरे में सावज़्जनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों, स्वायत्त निकायों, केंद्रीय लोक उपक्रमों, सार्वजनिक-निजी भागीदारी वाली परियोजनाओं को भी लिया गया है जो सरकार या उसके अंतर्गत आने वाली इकाइयों से वित्तीय समर्थन लेती हैं.
वहीं इसमें कहा गया है कि देश की रक्षा और सुरक्षा में राज्य सरकारों की अहम भूमिका है. इसको देखते हुए भारत सरकार ने राज्य सरकारों और राज्य उपक्रमों आदि द्वारा खरीद के मामले में इस आदेश के क्रियान्वयन को लेकर संविधान के अनुच्छेद 257 (1) का उपयोग करते हुए राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा है.
राज्य सरकारों की खरीद के मामले में उचित प्राधिकरण का गठन राज्य करेंगे लेकिन राजनीतिक और सुरक्षा मंजूरी अनिवार्य बनी रहेगी. कुछ मामलों में छूट दी गयी है. इसमें कोविड-19 वैश्विक महामारी की रोकथाम के लिये 31 दिसंबर तक चिकित्सा सामानों की आपूर्ति के लिये खरीद शामिल हैं.