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साहित्य/वीडियो

अवार्ड

एक लेखक को सम्मानित किया जाना था, जिसके लिए संस्था ने एक गायक कलाकार एक लाख रुपए दे कर बुलाया था। उस अवार्ड के कार्यक्रम के संचालन के लिए एक बहुत ही लोकप्रिय लेखक को बुलाया था। जि इसके लिए उसे पच्चीस हजार रुपए दिए गए थे। अवार्ड के इस ...

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ज्योति

ज्योति घर गृहस्थी में पूरी तरह रम चुकी थी। उसे घर परिवार का ध्यान रखना, उनकी पसंद का खाना बनाना सभी कुछ अच्छा लगता था। क्यूंकि ज्योति की काकी ने उसको आठवीं के बाद सिर्फ घर परिवार का कैसे ध्यान रखना? खाना बनाना बस इतना ही उसे सिखाया था। पढ़ाई ...

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मानसिकता का आधुनिकरण

“नारी अस्य समाजस्य कुशलवास्तुकारा अस्ति”अर्थात, महिलाएं समाज की आदर्श शिल्पकार होती हैं। लेकिन आजकल की कुछ महिलाएँ शिल्पकार नहीं संस्कार विहीन होती है। क्यूँकि सभ्यता और संस्कार का अग्निसंस्कार सिर्फ़ कुछ मर्दों ने ही नहीं कर दिया, अब इस मामले में  औरतें भी दो कदम आगे बढ़ती दिखाई दे रही ...

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अटकेगा सो भटकेगा

अटकेगा सो भटकेगा, अगर कार्य से पहले अत्यधिक सोचेगा। दुविधा में जो तू पड़ेगा, अधूरा कार्य तेरा हमेशा रहेगा।। बहुत लोकप्रिय कहावत है, अटकेगा सो भटकेगा! अक्सर मनुष्य, ज्यादा चाह की वजह से, या तो भरोसेमंद ना होने की वजह से दुविधा में रहता है और यह नकारात्मक प्रभावों से ...

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इश्क का बुखार

अभी मंगरा का बचपना ठीक से खत्म भी नहीं हुआ था कि बदमाशियां उसकी शुरू हो गई थी, उसका जीने का ढंग ही बदल गया था और तभी उसके साथ वह हादसा हो गया था। उसी के खातिर वैध साधू महतो को हमारे घर आना पड़ा था। आज ही सुबह। ...

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शादी के बाद क्यूँ बदल जाती है बेटियों की पहचान

“किसने बनाई यह रस्में, किसने बनाए रिवाज़? बेटियों के वजूद को मिटाने की साज़िश थी, या थी महिलाओं को जूती के नीचे दबाए रखने की ख़्वाहिश” सारी परंपराएं, सारे रिवाज़ और सारी बंदीशें सिर्फ़ स्त्रियों के लिए ही क्यूँ? सदियों से थोपी गई रवायत को महिलाएं भी ढ़ोती आ रही ...

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चल पहल कर!

चल पहल कर! किसी के भरोसे क्यों रहना, सब करें उसके बाद क्यों करना, भेड़ चाल क्यों जरूरी है चलना, चल तू ही पहल कर, किसी बात से तुझे नहीं डरना।। किसी की राह, क्यों तकना, बीतने के बाद क्यों समझना, किसी के बाद में क्यों बनना, चल तू ही ...

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महत्वपूर्ण उत्सव, अमृत महोत्सव!

महत्वपूर्ण उत्सव, अमृत महोत्सव! सदियों की गुलामी के पश्चात, 100 वर्ष के विद्रोह के बाद, हुआ हमारा देश आजाद, 15 अगस्त 1947 को, हुई इसे स्वाधीनता प्राप्त। हुआ भारत का पूर्ण जन्म, तोड़ दिया गुलामी का भरम, हो गया हमारा देश स्वतंत्र, लाल किले में झंडा फहरा कर, नेहरू जी ...

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तिरंगा

विजय ना जाने क्यों झंडे की ही पूजा करते मिलता है, उसे कभी किसी देवता की पूजा करते मैंने नहीं देखा, रवि ने संजय से हैरानी से पूछा। हां भाई, मैंने भी देखा है ये तो, चलो विजय से ही चलकर पूछ लिया जाए की ऐसा इस झंडे में क्या ...

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अविस्मरणीय पलः मन्नू भंडारी से मुलाकात

स्मृतियों के झरोखों से झाँक कर देखती हूँ तो असंख्य अनमोल स्मृतियों से अपने आप को भरापूरा महसूस करती हूँ। मुझे याद आता है वह सहज, सरल तथा सौम्य चेहरा जिनसे मेरी मुलाकात 25 मार्च 1984 में उनके निवसा स्थल 103, हौजखास, दिल्ली में हुई। अपने समय की प्रख्यात और ...

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